मानसिक चिंता पैदा करता है बांझपन-
डॉक्टरों और प्रजनन विशेषज्ञों के अनुसार, पुरुषों को भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक समर्थन देने या उनसे बांझपन से संबंधित समस्याओं के बारे में खुलकर बात करने की संभावना महिलाओं के मुकाबले बहुत कम है।
हालांकि, बांझपन के दौर से गुजरना एक दंपती के लिए बहुत ही तनावपूर्ण और गहन अनुभव है, जो रिश्ते पर गंभीर तनाव का कारण बनता है। इस दौरान दोनों को पर्याप्त भावनात्मक समर्थन और मार्गदर्शन की जरूरत होती है।
उम्र का पुरुष प्रजनन क्षमता पर प्रभाव-
ज्यादातर लोग जानते हैं कि महिला प्रजनन क्षमता उम्र के साथ कम हो जाती है। लेकिन अब इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि उम्र पुरुष प्रजनन क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
शोध के अनुसार, 45 वर्ष या उससे अधिक आयु के पुरुष कम मात्रा में शुक्राणु रिलीज करते हैं और उनकी गुणवत्ता भी कम होती है। यदि गर्भधारण हो भी गया तो गर्भपात या उनके बच्चों में जन्म दोष और स्कित्जोफ्रेनिया और ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकारों की आशंका बढ़ जाती है।
मोटापा व अवसाद पिता नहीं बनने देता-
अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पाया है कि पुरुष अवसाद रहित दंपती में गर्भावस्था दर, पुरुष अवसाद वाले दंपती के मुकाबले दो गुना अधिक रहती है। आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी पता चला है कि बॉडी मास इंडेक्स और कमर का घेरा बढ़ा हो तो पुरुषों की स्खलन की मात्रा कम हो सकती है। मोटापा भी पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या में गिरावट का कारण बन सकता है।
मेडिकल नॉलेज-
पुरुषों और महिलाओं में निःसंतानता की स्थिति समान नहीं होती। लेकिन संतानोत्पत्ति के लिए दोनों का स्वस्थ होना जरूरी है। आज लड़के-लड़कियां संतान उत्पत्ति की उर्वरा उम्र को पार करने के बाद शादी का निर्णय लेते हैं। नतीजा यह होता है कि स्वस्थ संतान पैदा होने में समस्या हो जाती है।
डॉ. योगिता परिहार आईवीएफ एक्सपर्ट, इंदौर कहती हैं कि संतान उत्पन्न करने के लिए महिला-पुरुष दोनों का मेडिकली सक्षम होना आवश्यक है। तभी कोई दंपती यह सुख पा सकता है।
विवाह के बाद अधिकांश युवा अपने परिवार को आगे बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन मुद्दों के बारे में पूरी तरह से जानते हैं। इसलिए ही महिला के गर्भवती नहीं होने पर पुरुष की शारीरिक कमी की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है।
निःसंतानता को अक्सर महिला की समस्या के रूप में ही देखा जाता है। जानकारी की इस कमी ने ही पुरुषों में प्रजनन समस्याओं के बारे में अज्ञानता और गलत धारणाओं को जन्म दिया है।
दोनों की स्थिति एक समान नहीं-
एक जनमत सर्वेक्षण के अनुसार, 59 फीसदी पुरुष बांझपन और नपुंसकता के बीच के अंतर को नहीं जानते हैं। नपुंसकता, जिसे मेडिकल टर्म में इरेक्टाइल डिसफंक्शन या स्तंभन दोष के रूप में जाना जाता है।
यानी जब कोई पुरुष संभोग के समय अपने गुप्तांग में पर्याप्त इरेक्शन या स्तंभन लाने में नाकामयाब हो जाता है या फिर उसको बरकरार नहीं रख पाता, तब उस स्थिति को इरेक्टाइल डिसफंक्शन कहते हैं, जबकि बांझपन एक सफल गर्भावस्था होने में विफल होना है और यह कई कारकों की वजह से हो सकता है।
आईवीएफ के अलावा और भी कई विकल्प-
प्रजनन उपचार के बारे में आम धारणा टेस्ट ट्यूब बेबी और इन विट्रो निषेचन के आसपास घूमती है। हालांकि, सहायक प्रजनन तकनीक एआरटी में अब उपचार के कई विकल्प शामिल हैं। वास्तव में, उपचार का पहला चरण अकसर सही समय में संभोग का समय निर्धारण है।
यदि महिला के अंडे और पुरुष के शुक्राणु का सही समय पर मिलन हो तो गर्भधारण सफलतापूर्वक संपन्न हो जाता है। ओपिनियन पोल में पाया गया कि 84 फीसदी महिलाएं और 81 फीसदी पुरुष प्रतिभागी प्रजनन संरक्षण के विकल्प की उपलब्धता जैसे कि अंडे के संरक्षण और भ्रूण फ्रीजिंग से अनजान रहते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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