Published By:धर्म पुराण डेस्क

मेरे प्रिय आदरणीय बुजुर्ग, 'कुछ कहना है मुझे आपसे', अनुभव की गठरी है वृद्धावस्था

कई आदरणीय बुजुर्ग आकर कहते हैं कि हम अकेले हैं। कारण अलग अलग हैं लेकिन हर एक की जिंदगी में इस अकेलेपन का बसेरा है। 

कोई कहता है बेटियां अपने-अपने घर चली गई, तो किसी का बेटा अपने करियर में और अपने परिवार में व्यस्त है...कुछ के लिए परेशानी यह है कि हमारे बच्चे हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे...वो अच्छे पदों पर नहीं पहुंच पाए। 

हमारे संघर्ष का कोई मतलब ही नहीं रहा। तो किसी के पास परिवार होते हुए भी उनकी कोई सुनने वाला नहीं... कोई ख्याल रखने वाला नहीं है। 

ऐसे में इन सबकी जिंदगी में शामिल हो चुका है अकेलापन। जिसकी वजह से ये सब घबराए हुए हैं और इनके पास कहने के लिए सिर्फ इतना ही रहता है कि हम बहुत अकेले हैं...!

और भी ऐसे ही कितने दुख हैं जो जीवन संध्या के इन दिनों में अमूमन हर इंसान को झेलने पड़ते हैं या कहें कि उम्र के साथ उन पर हावी होते रहते हैं।

मैं समझती और महसूस करती हूं आपके दुख को, पर बार-बार उन संघर्षों, उन इच्छाओं को जो आपके बच्चे पूरी न कर सके, उन सारे कठिन जीवन के तारतम्य को याद कर-करके क्या हासिल होगा- 'कुछ भी नहीं', सिर्फ होगा तो ये कि आप तनाव में रहकर अपनी सेहत खराब कर लेंगे। और अक्सर मामलों में यही देखने में आते हैं। 

आज की पीढ़ी बुजुर्गों की सुनती नहीं है या फिर उनके क्रियाकलाप बुजुर्गों को तनावग्रस्त कर देते हैं।

वृद्धावस्था अनुभव की गठरी होती हो। आप समझते हो न हर बच्चा अपनी प्रतिभा और अपना भाग्य लेकर आता है। वह अपनी एक विचारधारा वाला होता है। 

फिर यदि वह आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा तो तनाव में आकर इतना कष्ट क्यों सहते आप? या फिर आपने ही चाहा कि बच्चे अच्छे मुकाम पर हों, तो आपको देखते हुए ही उन्होंने संघर्ष के साथ अपना मुकाम चुन लिया। अब दूर चले गए तो भी दुखी हैं आप..

लगभग एक दशक से पारिवारिक सामाजिक स्थितियां वसुधैव कुटुम्बकम् की नहीं हैं। जीवन की आपाधापी में हर किसी के पास समयाभाव है। इसलिए अभी थोड़ा समय सिर्फ अपने सुकून के लिए चाहते हैं इसलिए शायद आप अकेला महसूस करते हैं। 

कृपया परेशान न होइए, समय के साथ स्वयं में कुछ बदलाव लाते रहिए। 

जैसे- यदि आप सोशल मीडिया ..

• इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (फेसबुक, अन्य ढेरों एप्स) से जुड़ेंगे तो लाखों लोग आपको आपके जैसे मिल जाएंगे।

• कई ऐसे एप्स भी है जो जानकारी मिलते ही तुरंत मदद के लिए सहयोग प्रदान करते हैं। इसलिए अपडेट रहिए।

• आप शहर में उपस्थित सभी सामाजिक संगठनों से जुड़े रहिए। ताकि समय आने पर वहां से तुरंत मदद हो सके।

• एक विशेष बात-अपनी भावनाओं में बहकर अपनी सारी जमापूंजी खर्च न करें। संभव हो तो सारे जीवन संघर्ष के बाद जोड़े हुए धन का 85% अपने पास संजोकर रखें।

फैमिली सलाहकार शालिनी कहती हैं -

आपका मन भी तनाव रहित होगा व आपका स्वाभिमान भी कमजोर नहीं पड़ेगा।

• जिससे जीवन पर्यंत इस पड़ाव में आने वाली बीमारियों और देखभाल के लिए होने वाले खर्ची के लिए किसी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा।

अंत में इतना ही कहना है कि 'माना कि जीवन घोर उदासी है पर आपने कहां हिम्मत हारी हैं। इसलिए कृपया अपना ख्याल रखिए।


 

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