 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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नाद-साधना, या लययोग, एक अद्वितीय आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें साधक ध्यान और योगाभ्यास के माध्यम से अनाहत नाद की अनुभूति करना प्रयास करता है। इस साधना के माध्यम से चित्त को स्थिर करने, ध्यान में लीन करने, और आत्मा के साक्षात्कार की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास किया जाता है।
नाद-साधना का महत्व:
चित्तशुद्धि: नाद-साधना के माध्यम से साधक अपने चित्त को शुद्ध करता है और उसे चिन्हित करने में सहायक होती है।
ध्यान की साधना: नाद-साधना ध्यान में लीन होने का मार्ग प्रदान करती है, जिससे साधक अपने आत्मा की अद्वितीयता को अनुभव कर सकता है।
आत्मा के साक्षात्कार: नाद-साधना से साधक अपने आत्मा के साक्षात्कार की दिशा में आगे बढ़ता है और आत्मा का साक्षात्कार करता है।
चित्त की निगरानी: नाद-साधना के प्रयास से चित्त अपनी चपलता को गवाने में सहायक होता है और स्थिर होता है।
अंतर्दृष्टि का विकास: नाद-साधना के माध्यम से साधक अंतर्दृष्टि को विकसित करता है और अपनी आत्मा की अद्वितीयता को पहचानता है।
नाद-साधना के चरण:
आत्म-समर्पण: साधक को नाद-साधना के लिए आत्मसमर्पण और उन्नति की इच्छा होनी चाहिए।
योगाभ्यास: ध्यान और योगाभ्यास के माध्यम से चित्त को स्थिर करने का प्रयास करना चाहिए।
नाद-ध्यान: नाद-साधना के लिए साधक को ध्यानपूर्वक अनाहत नाद की अनुभूति करनी चाहिए।
आत्म-अध्ययन: आत्म-अध्ययन और अंतर्दृष्टि को विकसित करने के लिए समय देना चाहिए।
गुरु का मार्गदर्शन: नाद-साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए एक अनुभवी गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।
नाद-साधना साधक को आत्मा के अद्वितीयता की अनुभूति में मदद कर सकती है और उसे आत्मा के अद्वितीय स्वरूप का अनुभव करने का सामर्थ्य प्रदान कर सकती है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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