ॐ ही नादब्रह्म है। नाद ध्वनि को कहते हैं। ध्वनि कंपन मात्र है। स्वयं-भू का प्रथम प्रतीक ॐ ही है। हम स्वयं-भू के संबंध में कुछ भी तो ज्ञान नहीं रखते, सिवाय इसके कि उसका अस्तित्व है।
शास्त्रों की कृपा से हम केवल इतना जान सके हैं कि सृष्टि रचना कैसे हुई, स्वयं-भू से कैसे उपजी? कहते हैं कि ब्रह्म एक था, अद्वितीय था। इसने सोचा: 'मैं एक से अनेक हो जाऊँ।' इस विचार से जो ध्वनि-कंपन हुआ, वह ध्वनि ॐ की ही थी। इसीसे सब कुछ प्रकट हो गया।
यथार्थ में ध्वनि ही सृष्टि का बुद्धिगम्य आधार है। ब्रह्म इन्द्रियों के स्तर पर अगम्य है। अतः केवल ध्वनि द्वारा ही हमें वहाँ तक पहुँचना है। हम इसी ध्वनि को अक्षरब्रह्म की संज्ञा देते हैं ।
ध्वनि और नाद अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं। यह धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में उच्च महत्व रखती हैं। इस सन्दर्भ में, नाद ब्रह्म का प्रतीक कहलाता है, जबकि ध्वनि उसका स्वरूप होती है जो हमारी इंद्रियों द्वारा अनुभव की जाती है। ध्वनि को कंपन भी कहा जाता है, क्योंकि यह विभ्रम की स्थिति है, जो एक विपथ पर होने की प्रतीति कराती है।
अद्वैतवादी दर्शन के अनुसार, ब्रह्म एक, अनंत और अद्वितीय है। यह अकेला अस्तित्व रखने वाला अद्वैत ब्रह्म ने अपनी आत्म संवेदना से सोचा, "मैं अनेक हो जाऊँ"। इस विचार से एक ध्वनि उत्पन्न हुई, जो ओंकार (ॐ) के रूप में जानी जाती है। इसी ध्वनि के माध्यम से सृष्टि का आदिकारण हुआ और ब्रह्म की प्रकृति प्रकट हुई।
ध्वनि यहां प्रकृति के प्रतीक के रूप में प्रयोग हुई है और अक्षरब्रह्म के नाम से जानी जाती है। ध्वनि को समझने के लिए, हमें अपने इंद्रियों के अलावा और उच्चतर स्तर पर पहुँचने की आवश्यकता है। ध्वनि अगम्य है, इसलिए हमें इसे अनुभव करने के लिए ध्यान में लाना होगा। इसके माध्यम से ही हम ब्रह्म के प्रतीक को समझ सकते हैं और अपनी आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं।
ध्वनि अक्षरब्रह्म की संकेतात्मक शब्दावली होती है, जिसे हम उपयोग करके ब्रह्म के प्रतीकों तक पहुँच सकते हैं। इस रूपांतरण के माध्यम से हम अनंत ब्रह्म के अस्तित्व और सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
ध्वनि के माध्यम से हम अपने आप को ब्रह्म की उपस्थिति में अनुभव कर सकते हैं और ब्रह्म के अद्वैत स्वरूप को समझ सकते हैं। इस अद्वैत तत्त्व का अनुसरण करके हम सच्ची मुक्ति और संपूर्णता की प्राप्ति कर सकते हैं।
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