 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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टिहरी जिले (उत्तरांचल) में लम्ब गाँव से अथवा उत्तर काशी की सीमा रायमेर बड़ेथ, जो उत्तर काशी लम्बगाँव मार्ग पर स्थित है। वहाँ से करीब 15 किमी गाँव से ऊपर पहाड़ पर "नागराजा का मन्दिर" स्थित है। पौढ़ी, उत्तरकाशी और टिहरी में इस मन्दिर की बड़ी मान्यता है। लोग अपनी मनौती मानते हैं; जो प्रायः पूरी होती है। दिसम्बर-जनवरी में मन्दिर बर्फ से ढँक जाता है। सम्भव है कि प्राचीन काल में यह सर्पों का स्थान रहा हो।
मंदिर से कुछ दूर एक बड़ी शिला पर पैर के चिह्न हैं। ऐसी मान्यता है कि ये चरण-चिह्न नागराजा के हैं। पहाड़ के नीचे एक विस्तृत घास का मैदान हैं। वहाँ आस- पास के स्थानीय भक्त लोग राज राजेश्वरी, हरि महाराज, कडर, कचडू, महसू, सती आदि स्थानीय देवताओं को लाल वस्त्रों से खूब सजी-धजी डोलियों में लाते हैं। डोलियाँ लाने वाले अपने साथ लाये देवताओं सहित नागराजा के दर्शन करके ये भक्तगण वहाँ नाचते हैं। जन्माष्टमी पर यहाँ बड़ा मेला लगता है।
यहाँ बताया गया कि श्रीकृष्ण ने यमुना में कालियनाग को नाथ कर यमुना नदी से भगा दिया था । अतः कालिय नाग से युद्ध के समय उसकी विषैली फुंकारों से
भगवान् का रंग काला (श्याम) हो गया था। जिन नागों के सिर पर खड़ाऊँ जैसा चिह्न है, वह श्रीकृष्ण की खड़ाऊँ का चिह्न माना जाता है। अत. इस चिह्न वाले नाग कालिय के वंशज माने जाते हैं ।
नवजात बालक कृष्ण को ब्रज ले जाने के लिए वसुदेव द्वारा यमुना पार करते समय हुई वर्षा से नाग ने अपना फन फैलाकर कृष्ण की रक्षा की थी। इन्हीं कारणों से वहाँ श्रीकृष्ण को नागराजा कहा जाता है।
 
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