Published By:धर्म पुराण डेस्क

नारी तीर्थ कांची एवं कावेरी…

नारी तीर्थ कांची एवं कावेरी…

हमारी जन्मभूमि भारत के आदि- मध्यावसान में परम ब्रह्म स्वयं नारी-रूप से अवस्थित हैं। भगवती श्रुति कहती हैं— 'त्वं कुमार उत वा कुमारी।' यह भारत भूमि के सम्बन्ध में स्वरूप- सिद्ध स्थिति है। उत्तर में हैमवती, मध्य में विन्ध्यवासिनी और दक्षिण में समुद्र तट पर यही श्री पराशक्ति कौमारावस्था में विराजमान कन्याकुमारी नाम से अभिहित होती हैं।

भारत भूमि के नौ खंडों में एक खण्ड कुमारिका खण्ड है। महर्षि अगस्त्यसेवित द्रविड़-भाषा-भाषी इस प्रान्त के दक्षिण भाग में सप्तपुरियों में प्रसिद्ध कांची और सप्त महानदियों में प्रख्यात कावेरी हैं। श्रीमद्भागवत में भगवान व्यास ने आधे श्लोक में इसका वर्णन किया है|

कामकोटिपुरीं काञ्चीं कावेरीं च सरिद्वराम् । श्रीकांची की अधिष्ठात्री हैं- भगवती कामकोटि ।

प्राचीन काल में एक मूक बालक ने भगवती कामकोटि की आराधना की और उनकी कृपा से वह महाकवि हो गया। उसने पांच सौ श्लोकों से श्री अम्बा की स्तुति की है। यह स्तव 'मूक-पंचशती' के नाम से विख्यात है। श्री कामकोटि का स्वरूप क्या है? मूक कवि की धारणा है कि नारी-शक्ति की सम्पूर्णता- चरम सीमा - ही भगवती का स्वरूप है। 

'पुण्या कापि पुरन्ध्री' ‘नारिकुलैकशिखामणिः' आदि के द्वारा उन्होंने अपने भावों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है।

कांची के साथ कावेरी का अभिन्न संबंध है। शास्त्रों का कथन है कि सती-शिरोमणि देवी लोपामुद्रा अपने पति भगवान् अगस्त्य के कमंडल से जल रूप धारण करके लोक-कल्याणार्थ कावेरी नाम से प्रवाहित हो रही हैं। श्रीकांची में ही कुम्भ सम्भवा कावेरी ने द्विविध रूप धारण किया है। एक का नाम है उत्तर कावेरी और दूसरी का दक्षिण कावेरी।

जो देश नदी द्वारा सिंचित होकर उर्वर होते हैं, वे नदी- मातृक कहे जाते हैं और जो देश वर्षा पर निर्भर करते हैं, वे देव-मातृक होते हैं। चोल देश नदी-मातृक देश है। भगवती कावेरी ही उसकी माता है। अपने दक्षिण कावेरी रूप से वे इस सन्तति का पोषण करती हैं। इस धारा का प्रायः सम्पूर्ण जल देश के उपयोग में व्यय हो जाता है। 

उत्तर कावेरी जिनका विख्यात नाम 'कोल्लिडम्' है, उनका सम्पूर्ण जल नदीपती समुद्र में पहुंचता है। इसके द्वारा मानो श्री कावेरी जी नारी स्वरूप का एक आदर्श उपस्थित करती हैं कि एक साथ पुत्र का वात्सल्य भाव से पालन-पोषण एवं पति की सेवा नारी को करना चाहिये। इसी भाव को लक्ष्य कर कवि ने लिखा है| 

तनूभवे वत्सलता नुरागो धवे समं तद्वितयं ममेति । 

द्वेधा विभक्तेव कवेरजायं पुष्णाति सिन्धुं च भजत्यजत्रम् ॥

सातों पुरियोंको शास्त्रों में मोक्षदायिनी बताया गया है। उनमें कांची की अधिष्ठात्री नारी हैं और पुण्य-सरिता कावेरी का तो अनन्त माहात्म्य पुराणों में वर्णित है।


 

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