क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि प्रकृति की हम पर कितनी कृपा है, उसका हमें कितना सहयोग मिलता है?
यदि कभी इस मुद्दे पर आपने सोच विचार किया होता तो यह तथ्य समझ जाते कि यदि प्रकृति हमें सहयोग न दे रही होती. हमारे प्रति कृपालु न होती तो हम कब के चल बसे होते! बात थोड़ी कड़वी है पर है कठोर सत्य इसे थोड़ा समझे।
आप जरा सोचिए कि हमारे शरीर के जितने काम 'इमरजेंसी सर्विस' के है वे हमारे भरोसे न छोड़ कर प्रकृति ने खुद अपने हाथ में ले रखे हैं।
खाना, खाना हमारे हाथ में है लेकिन इसे पचाने का काम प्रकृति करती है शरीर को प्राणवायु मिलना बहुत जरूरी है वरना 2-3 मिनट में हमारी लीला समाप्त हो सकती है.
लिहाज़ा प्रकृति ने हमारा सांस लेना व छोड़ना हमारे भरोसे नहीं छोड़ा वरना सोते समय हम सांस कैसे लेते? और सोते हुए की बात तो छोड़िए, जागते हुए भी हम कितनी भूलें करते रहते हैं तो ऐसा भी हो सकता था कि ज्यादा बिजी होने पर सांस लेना ही भूल जाते।
इसी तरह दिल का धड़कना, नसों में रक्त का संचार करना, आहार का पाचन होना, मल मूत्र का विसर्जन होना आदि शरीर के अनेक काम अपने आप होते रहते हैं, क्योंकि इन्हें प्रकृति ने अपने नियंत्रण में रखा है, हमारे ऊपर नहीं छोड़ा वरना हमारी कैसी फजीहत होती यह हम खुद सोच सकते हैं क्योंकि जो कुछ हमारे ऊपर छोड़ रखा है उसमें ही हम कितनी घपलेबाजी किया करते हैं।
प्रकृति की तरह हम भी प्रकृति को सहयोग दें, प्रकृति के अनुसार आचरण करें और अपने कामों में लापरवाही न करें तो ही हम स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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