Published By:धर्म पुराण डेस्क

भक्ति मार्ग में दिव्य कर्म का स्वरूप

भक्ति मार्ग में कर्मों का एक विशेष स्वरूप होता है जो दिव्यता की अवस्था में किया जाता है। यहां हम इस दिव्य कर्म के स्वरूप को समझेंगे।

भक्ति मार्ग में दिव्य कर्म-

भगवान के प्रति तल्लीन होना:

भक्ति मार्ग में भक्त अपने कर्मों को भगवान के लिए करता है, और उसमें भगवान के प्रति तल्लीनता होती है।

दिव्य भाव:

इस स्थिति में भक्त के कर्म दिव्य भाव से युक्त होते हैं, जिसमें स्वार्थ की अभिमानता नहीं होती, बल्कि सब कुछ भगवान के लिए ही किया जाता है।

देवोत्तम स्थिति:

भक्ति मार्ग में भक्त का मानसिक और आत्मिक स्थिति देवोत्तम (उच्चतम भक्ति स्थिति) होती है, जिससे उसके कर्म भी दिव्य हो जाते हैं।

भक्ति मार्ग में कर्म दिव्य होते हैं क्योंकि भक्त, भगवान के प्रति अपनी पूरी भावना को समर्पित करता है और उसके कर्म स्वार्थ से रहित होते हैं। भगवान के तल्लीन होने के कारण, उसके कर्मों में दिव्यता होती है, जो सांसारिक आशक्तियों से परे होती हैं। इससे भक्त को आत्मा के साथ एकता की प्राप्ति होती है और उसके कर्मों का फल भी बंधनरहित होता है।

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