Published By:धर्म पुराण डेस्क

पुराणों में ग्रहण का स्वरूप 

देवलिंगप्रतिच्छन्नः स्वर्भानु देव संसदि।

प्रविष्टः सोममपिबच्चन्द्राभ्यां च सूचितः।। 

चक्रेण सुरधारेण जहार पिबतः शिरः। 

हरिस्तस्य कबन्धस्तु सुधया प्लावितोऽपतत्।। 

शिरस्त्वमरतां नीतमजो ग्रहमचीक्लृपत्।

यस्तु पर्वणि चन्द्रावभिधावति वैरथीः ।। 

"भगवान विष्णु जब मोहिनी का रूप बनाकर देवताओं को अमृत पिलाने लगे तब राहु देवताओं का रूप बनकर उनकी पंक्ति में बैठ गया। उस समय सूर्य और चन्द्रमा ने राहु को देख लिया। सूचना देने पर भगवान ने सुदर्शन चक्र से राहु के सिर को काट दिया। 

परंतु तभी से अमृत से भरपूर धड़ का नाम केतु और अमरत्व को प्राप्त हुए सिर का नाम राहु हो गया। भगवान ने उनको ग्रह बना दिया। यह बैर के कारण पूर्णमासी में चंद्रमा की ओर तथा अमावस्या में सूर्य की और दौड़ता है, यही पुराणों में ग्रहण का की सूचना स्वरूप है।

धर्मशास्त्र की दृष्टि से ग्रहण-

धर्म शास्त्र तथा पुराणों का कथन है कि ग्रहण काल में दान एवं हवन करने से बहुत फल मिलता है। यह विषय श्री भास्कराचार्य जी ने उठाया और समर्थन किया है। 'धर्मसिन्धु' में आता है कि ग्रहण लगने पर स्नान, ग्रहण के मध्यकाल में हवन तथा देवपूजन और श्राद्ध। 

ग्रहण जब समाप्त होने वाला हो तब दान और समाप्त होने पर पुनः स्नान करना चाहिये। यदि सूर्यग्रहण रविवार को हो और चन्द्र ग्रहण सोमवार को हो तो उसे चूड़ामणि कहते हैं। उस ग्रहण में स्नान, जप, दान, हवन करने का और भी विशेष फल है। 

तंत्र शास्त्र की दृष्टि से ग्रहण अगस्ति संहिता में कहा गया है-

सूर्य ग्रहणकालने समोऽन्यो नास्ति कश्चन। 

तत्र यद् यत् कृतं सर्वमनन्तफलदं भवेत्।। 

सिद्धिर्भवति मन्त्रस्य विनाऽऽयासेन वेगतः।

कर्तव्यं सर्वयत्नेन मंत्र सिद्धि भीप्सुभिः।। 

तीर्थों और सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण में मंत्र -दीक्षा लेने के लिए कोई विचार न करें। सूर्यग्रहण के समान और कोई समय नहीं है। सूर्य ग्रहण में अनायास ही मंत्र की सिद्धि हो जाती है। इन श्लोकों में मंत्र, शब्द, यन्त्र का भी उपलक्षक है। इसका सारांश यह है कि ग्रहण काल में मंत्रों को जपने से तथा मन्त्रो को लिखने से विलक्षण सिद्धि होती है। इसके अतिरिक्त इस काल में रुद्राक्ष माला के धारण मात्र से भी पापों का नाश हो जाता है। 

इसलिये जाबालोपनिषद् के चौवालीस वें श्लोक में लिखा है कि- 

ग्रहणे विषुवे चैवमयने सडकर्मऽपि च।

दर्शेषु पौर्णमासेषु पूर्णेषु दिवसेषु च। 

रुद्राक्ष धारणात् सद्यः सर्वपापैः प्रमुच्यते।।

गणपत्युपनिषद् में भी लिखा है कि सूर्य ग्रहण में महानदी अर्थात गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों में या किसी प्रतिमा के पास मंत्र जपने से वह सिद्ध हो जाता है।


 

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