नवरात्रि चाहे चैत्र की हो, चाहे शारदीय हो। व्रत-उपवास, पूजा-अर्चना का क्रम अविराम चलता है। देवी मंदिरों में माता को जल चढ़ाने, धूप-दीप करने, नारियल चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती हैं, वरदान देती हैं। देवी से वरदान पाने की लालसा में आधी रात को भी भीड़ बनी रहती है, देवी जागरण के नाम पर रतजगा भी चलता है।
पहले रात भर ढोल, झांझ, मजीरे झनकते खनकते थे, नगड़िया टिमकती थी। लोक नर-नारी भगत (भक्ति गीत) गाते थे। भवानी कला दिखाती थी, काली किरपाण लिये खप्पर के सामने नाचती थी, लाल-लाल जीभ लपलपाती भगत-भगतिनों पर देवी सवार होती थी,
महादेवी मनोकामना पूरी करती थी। मन में निर्मल्या होता था आस्था-श्रद्धा होती थी, विश्वास होता था। देवी जागरण में अभी भी रात अविराम होती है। फिल्मी गानों की तर्ज पर बने आधुनिक देवी गीतों के स्वर डी.जे. से कर्कश स्वर में निकलते हैं। आधुनिक युवक-युवतियाँ विभिन्न काममुद्रायें प्रदर्शित करते बड़े-बड़े मंचों पर, आलिंगन- अंगपर्शन, मर्दन करते उछलते-कूदते हैं। देवी जागरण का आनन्द सर्वांग लूटते हैं।
श्रद्धा-आस्था, भक्ति-भाव, पूजन-अर्चन के प्रति दृढ़ विश्वास अभी भी भारतीय लोक मानस में है। वह आद्या शक्ति परम शक्ति पर विश्वास करता है। इसे परम्परावादिता कहा जाता है, अंधविश्वास कहा जाता है, रूढ़िवादिता कहा जाता है, ढोंग-ढकोसला कहा जाता है, कोई बात नहीं।
नवरात्रि में होम-हवन होते हैं, देवी भागवत महापुराण कथा होती हैं; दुर्गा सप्तशती का अखंड, नवाह्न पारायण पाठ होता है। बहिर्मुखी मन, अंतर्मुखी होता है। चिंतन-मनन, ध्यान-धारणा, यंत्र-मंत्र-तंत्र की सिद्धि साधना भी होती है। व्रत-उपवास तो होते ही हैं। यह सब धार्मिकता, आस्तिकता, आध्यात्मिकता के परिप्रेक्ष्य में होता है।
देवी पुराण, दुर्गा सप्तशती एवं अन्य तंत्र शास्त्रों में सृष्टि के विकास क्रम का अत्यंत सूक्ष्म, गहन और विशद वैज्ञानिक अध्ययन- अनुसंधान, अवलोकन निरीक्षण, विश्लेषण और निष्कर्ष है। यह तथ्य कि सृष्टि-सर्जन से पूर्व शाश्वत् अंधकार और शाश्वत ऊर्जा (परम शक्ति) विद्यमान थी। ऊर्जा अविनाशी होती है, अरूप होती है, प्रबल वेगमय होती है। ऊर्जा विविध रूप है, विभिन्न प्रभाव- परिणाम प्रदायिनी है।
ऊर्जा का विविध रूपों में अवतरण होता रहता है। ऊर्जा द्रव्य रूप में घनीभूत भी होती है और द्रव्य विखण्डित होता हुआ ऊर्जा रूप को प्राप्त होता है। यह विज्ञान में ऊर्जा की अविनाशिता, द्रव की अविनाशिता एवं ऊर्जा-द्रव की परस्पर परिवर्तनशीलता अविनाशिता के सिद्धांतों के अनुरूप ही है। प्रयोग पुर वैज्ञानिक निष्कर्ष है।
दीर्घकालीन प्रक्रिया में ऊर्जा का कुछ अंश द्रव्य रूप हुआ होगा। सूक्ष्म से स्थूल की उत्पत्ति हुई होगी स्थूल द्रव्य (MATTER) सूक्ष्म परमशक्ति (ENERGY) से क्रियाशील होता| अनेकानेक रूपों में, जड़ और चेतन में रूपांतरित होता क्रमशः विकासगान हुआ होगा ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सावित्री, सरस्वती, गायत्री, दुर्गा, लक्ष्मी, आरंभिक स्थितियों के सांकेतिक नाम है। यह पुरुष और प्रकृति, नर और नारी, धनावेश और ऋणावेश की प्रारंभिक स्थितियाँ है। इनमें सम्पूर्ण विकास क्रम, नृशास्त्र, शरीर शास अपने सांकेतिक रहस्यमयता में उपलब्धि हैं।
मंत्र-यंत्र और तंत्र विज्ञान की भाषा में सूत्र (FORMULA), उपकरण (APPARATUS) और तकनीक, प्रयोग विधि (TECHNIQUE & METHODOLOGY) हैं। तप-यज्ञ आदि ऊर्जा, संरक्षण, संवर्धन, प्रत्यावर्तन आदि विधियों हैं।
जड़ और चेतन का अंतर, जड़ में चेतना का संचरण, चेतन में जड़त्व का स्थापन, जीव का अस्तित्व में आना, शुक्र और रज के संयोग से भ्रूण निर्माण, एक कोषीय, बहुकोषीय एवं जटिल कोषीय प्राणियों का अस्तित्व में आना, नर- नारी संबंध आदि अनेक विषय इन ग्रंथों में समाविष्ट हैं। ज्ञान-विज्ञान का अक्षय अपूर भण्डार छिपा हुआ है इन कथाओं में।
इस नवरात्र कथाएं, वार्तायें, सुनिए, पढ़िये; शक्ति की साधना आराधना कीजिए। परन्तु इसके सूक्ष्म, गोपन, सांकेतिक रहस्य लोक में भी प्रविष्ट होने का प्रवास करिये। इनके आलोक में ज्ञान-विज्ञान के नये युग का सूत्रपात होगा। ऋतुचक्र दृष्टि से क्वॉर और चैत्र परिवर्तन के संक्रांति काल होते हैं। सम्पूर्ण विश्व संक्रांतिक अवस्था में है। अंधकार की शाश्वतता भी द्युतिमान होती है। 'शक्ति क्रीड़ा जगत्सर्वम्' विविध रूपों में शक्ति सर्वत्र क्रीड़ा कर रही है। समस्त विश्व महाशक्ति का ही विलास है।
'सर्वं खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्।' भगवती, महाशक्ति, पराविद्या के श्रीचरणों में कृपा याचना सहित बारम्बार नमस्कार-
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
डॉ. स्वामी विजयानन्द
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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