 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के दक्षिणी-पूर्वी सीमा पर सौ वर्ष से अधिक प्राचीन 'नीलकंठ' नाम का एक शिव मंदिर है। दीपावली से पूर्व बैकुंठ चतुर्दशी (नरक चौदस या छोटी दिवाली) तथा दीपावली पर नीलकंठ महाराज का जब शृंगार किया जाता है, तब शेषनाग जी भगवान शिव के पास आकर विराजमान हो जाते हैं।
भगवान नीलकंठ के अनेक भक्तों ने बताया कि उन्होंने स्वयं शेषनाग जी के कई बार दर्शन किए हैं। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को यहां भारी भीड़ होती है। बताया जाता है कि यहां मनौती मानने वालों की वह कामना पूर्ण होती है, जिसकी उन्होंने मनौती मानी होती है।
श्री नीलकंठ मंदिर परिसर में एक दिव्य प्रभावशाली कुआँ भी बना हुआ है, जिसे 'अमुनिया' कुएँ के नाम से जाना जाता है।
इस कुएँ का औषधियुक्त पानी संग्रहणी, टी.बी. एवं पेट की सभी बीमारियों के लिए मुफीद माना जाता है। अनेक लोग इस जल का उपयोग करने के लिए दूर-दूर से आते हैं और कुछ उदर रोगी तो नित्य यहाँ आकर जल पी कर रोग मुक्त हो जाते हैं।
यही नहीं, मंदिर टीले पर अमुनिया नाम का एक वृक्ष (पहले चार थे) भी लगा हुआ है। यहाँ एक दुर्लभ वृक्ष भी लगा हुआ है, जो सौ वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। इस वृक्ष पर एक विशेष प्रकार का फूल खिलता है, जिसकी आकृति ठीक वैसी ही बनती है, जिस प्रकार शिवलिंग के ऊपर सांप फन फैलाकर बैठने से जो आकृति बनती है ।
इस फूल को भगवान नीलकंठ पर अर्पण करने का विशेष महत्व माना जाता है। इसके अलावा मंदिर के ऊपर आँगन में मौलश्री के दो सुंदर वृक्ष भी हैं। उत्तर की तरफ एक पीपल का पेड़ है, जिसकी पूजा होती है। इसे भगवान्नीलकण्ठ का प्रभाव माना जा रहा है|
 
 
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