पर दुर्योधन पांडव सेना को देखकर द्रोणाचार्य के पास जाता है और उनसे पाण्डवों की व्यूहरचनायुक्त सेना को देखने के लिए कहता है।
इससे सिद्ध होता है कि दुर्योधन के हृदय में भय बैठा हुआ है । भीतर में भय होने पर भी वह चालाकी से द्रोणाचार्य को प्रसन्न करना चाहता है, उनको पांडवों के विरुद्ध उकसाना चाहता है।
कारण कि दुर्योधन के हृदय में अधर्म है, अन्याय है, पाप है। अन्यायी, पापी व्यक्ति कभी निर्भय और सुख-शांति से नहीं रह सकता यह नियम है। परन्तु अर्जुन के भीतर धर्म है, न्याय है। इसलिये अर्जुन के भीतर अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये चालाकी नहीं है, भय नहीं है, किंतु उत्साह है, वीरता है।
तभी तो वे वीरता में आकर सेना-निरीक्षण करने के लिये भगवान को आज्ञा देते हैं कि 'हे अच्युत ! दोनों सेनाओं के मध्य में मेरे रथ को खड़ा कर दीजिए' (पहले अध्याय का इक्कीसवाँ श्लोक)।
इसका तात्पर्य है कि जिसके भीतर नाशवान् धन-संपत्ति आदि का आश्रय है, आदर है और जिसके भीतर अधर्म है, अन्याय है, दुर्भाव है, उसके भीतर वास्तविक बल नहीं होता। वह भीतर से खोखला होता है।
और वह कभी निर्भय नहीं होता। परंतु जिसके भीतर अपने धर्म का पालन है और भगवान का आश्रय है, वह कभी भयभीत नहीं होता। उसका बल सच्चा होता है। वह सदा निश्चिंत और निर्भय रहता है।
अतः अपना कल्याण चाहने वाले साधकों को अधर्म, अन्याय आदि का सर्वथा त्याग करके और एकमात्र भगवान का आश्रय लेकर भगवत् प्रीत्यर्थ अपने धर्म का अनुष्ठान करना चाहिये ।
भौतिक सम्पत्ति का महत्व देकर और संयोगजन्य सुख के प्रलोभन में फँस कर कभी अधर्म का आश्रय नहीं लेना चाहिए; क्योंकि इन दोनों से | मनुष्य का कभी हित नहीं होता, प्रत्युत अहित ही होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024