Published By:धर्म पुराण डेस्क

राजनीति के क्षेत्र में विन्सटन चर्चिल, बेंजामिन फ्रेंकलिन, डिजरैली, ग्लेडस्टोन आदि अनेक ऐसे ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, जो अपनी वृद्धावस्था की चुनौती के बावजूद बहुत सक्रिय रहे, अपने देश की अमूल्य सेवा में अनवरत रूप से लगे रहे।
पश्चिम एवं भारत के वे कुछ महान पुरुष उल्लेखनीय हैं, जिनकी रचनात्मक शक्ति का हास उनकी ढलती उम्र के कारण कतई नहीं. हुआ था और जिन्होंने अपने बुढ़ापे में बड़े, महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी काम करके मानवता की अपूर्व सेवा की।
ऐसे महान पुरुषों में कुछ ये हैं- महान दार्शनिक संत सुकरात, प्लेटो, पाइथागोरस, होमर, खगोलशास्त्री गैलीलियो, प्रसिद्ध कवि विलियम वर्ड्सवर्थ, वैज्ञानिक थॉमस अलका एडिशन, लेखक निकोलस कोपरनिकस, विख्यात वैज्ञानिक न्यूटन, सिसरो, अलबर्ट आइन्स्टीन, टेनीसन, महात्मा टॉलस्टॉय, महात्मा गांधी तथा जवाहरलाल नेहरू।
महात्मा सुकरात सत्तर वर्ष की उम्र में अपने अत्यंत महत्वपूर्ण तत्त्वदर्शन की विशद व्याख्या करने में जुटे हुए थे। यही बात प्लेटो के संबंध में भी थी। वे अपनी अस्सी वर्ष की आयु तक बराबर कठोर परिश्रम करते रहे। इक्यासी वर्ष की अवस्था में हाथ में कलम पकड़े हुए उन्होंने मृत्यु का आलिंगन किया।
टैनीसन ने अस्सी वर्ष की परिपक्व अवस्था में 'अपनी, सुंदर रचना 'क्रासिंग दी बार' दुनिया को प्रदान की, रॉबर्ट ब्राउनिंग अपने जीवन के संध्याकाल में बहुत सक्रिय बने रहे। उन्होंने सत्तर वर्ष की उम्र में मृत्यु के लिखीं कुछ पहले ही अपनी सर्वश्रेष्ठ कविताएँ।
एच० जी० वेल्स ने सत्तर वर्ष की अपनी वर्षगांठ के उपरांत भी पूरे चुस्त और कर्मठ रहते हुए एक दर्जन से ऊपर पुस्तकों की रचना की। यूरोपियन की कल्पना पर आधारित उनकी पुस्तकें जीवन के उत्तरार्ध में ही लिखी गईं।
सिसरो ने अपनी मृत्यु के एक वर्ष पूर्व तिरसठ वर्ष की आयु में अपनी महत्त्वपूर्ण पुस्तक 'ट्रीटाइज ऑन ओल्ड एज' की रचना की। कीरो ने अस्सी साल की उम्र में ग्रीक भाषा सीखी।
प्लूटार्क यूनान के माने हुए साहित्यकार हुए हैं। उन्होंने पचहत्तर वर्ष की आयु के बाद लैटिन भाषा पढ़ना आरंभ की थी। इटली के प्रख्यात उपन्यासकार बोकेशियो को ढलती उम्र में साहित्यकार बनने की बात सूझी। उस ओर वह पूरी दिलचस्पी के साथ जुटा और अंततः मूर्धन्य कथाकार बनकर चमका। दार्शनिक फ्रेंकलिन की विश्वव्यापी ख्याति है। वे पचास वर्ष की आयु तक दर्शनशास्त्र से अपरिचित रहे। रुझान इसके बाद ही उत्पन्न हुआ और वह उन्हें विश्वविख्यात बनाकर ही रहा।
सुकरात ने साठ वर्ष पार करने के उपरांत यह अनुभव किया कि बुढ़ापे की थकान और उदासी को दूर करने के लिए संगीत अच्छा माध्यम हो सकता है। अस्तु उन्होंने गाना सीखना आरंभ किया और बजाना भी। यह क्रम उन्होंने मरते दिनों तक जारी रखा। विनोबा ने भाषाएँ सीखने का क्रम आजीवन चालू रखा। वे 24 भाषाओं के विद्वान थे तथा अंतिम वर्षों में सबसे कठिन चीनी भाषा सीख रहे थे। दामोदर सातवलेकर ने वेदों का भाष्य एवं आर्ष साहित्य पर अपना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य पचहत्तर वर्ष के बाद आरंभ किया एवं सौ वर्ष की आयु तक बराबर लिखते रहे।
अंग्रेजी राजनीति का इतिहास जिन्होंने पढ़ा है, वे ग्लेडस्टोन के नाम से परिचित हैं। उन्होंने अपना प्रायः सारा ही जीवन राजनीति की सेवा में लगाया और अच्छी लोकप्रियता प्राप्त की। 70 वर्ष की आयु में उन्होंने राज्य का उत्तरदायित्व संभाला और तीसरी बार भी जब वे प्रधानमंत्री बने, तब उनकी आयु 79 वर्ष की थी।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में होमर पर उनका भाषण अत्यंत शोध पूर्ण माना जाता है। वह उन्होंने 80 वर्ष की आयु में दिया था। बुढ़ापे में भी वे चैन से न बैठे। 85 वर्ष की आयु में उन्होंने 'ओडेसी ऑफ हॉरेस' ग्रंथ की रचना की थी।
आठवीं जर्मन सेना का सेनापतित्व पालवान हिंडोन वर्ग को जब सौंपा गया, तब वे 67 वर्ष के थे। 78 वर्ष की आयु में वे पार्लियामेंट के अध्यक्ष चुने गए। वे 87 वर्ष की आयु तक जिए तब तक उसी अध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठित रहे एवं सक्रियता पूर्वक संचालन करते रहे।
हेनरी फिलिप मिटेन जब फ्रांस के प्रधानमंत्री बने, तब वे 84 वर्ष के थे। उसी देश की नेशनल असेंबली के अध्यक्ष स्टवर्ड हैरियो 79 वर्ष की आयु में चुने गए। 86 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हुआ, तब तक वे उस पद का बड़ी योग्यतापूर्वक निर्वाह करते रहे।
लायड जार्ज ब्रिटेन के मूर्धन्य राजनेता रहे हैं। 75 वर्ष की आयु में भी उनकी कार्यशक्ति नौजवानों जैसी थी। चर्चिल ने द्वितीय महायुद्ध काल में जब इंग्लैंड का प्रधानमंत्री पद संभाला, तब वे 80 वर्ष के थे। जनरल मक्आर्थर 73 वर्ष की आयु में 45 वर्ष जैसे सक्रिय थे। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति सिंगमन 80 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह क्रियाशील थे एवं पुनः चुने गए थे।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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