Published By:अतुल विनोद

अपने काम को कभी कमतर ना समझें| आप भी हैं अपने क्षेत्र में महान ? अतुल विनोद

अपने काम को कभी कमतर ना समझें| आप भी हैं अपने क्षेत्र में महान ? अतुल विनोद

दुनिया कर्म से ही चलती है, लेकिन कर्म को लेकर भी कई तरह की भ्रांति है, एक इंसान जो रोजी-रोटी के लिए दिन रात मेहनत मजदूरी कर रहा है, वह यह सोचकर दुखी होता है कि इतनी मेहनत का मतलब क्या है? लेकिन वह इतनी मेहनत ना करें तो उसका घर नहीं चल सकता, वह चाहता तो है कि वह भी कुछ आध्यात्मिक साधना करे, धर्म से जुड़ी हुई अन्य गतिविधियों में हिस्सा ले, लेकिन यह उसके लिए संभव नहीं होता, एक बिजनेसमैन अपने बिजनेस में व्यस्त है, नौकरीपेशा अपनी नौकरी में व्यस्त है, एक स्टूडेंट अपनी पढ़ाई में व्यस्त है, सवाल यह उठता है कि क्या जो व्यक्ति अपने क्षेत्र में पूरी तन्मयता से काम कर रहा है, वह भी कर्मयोगी है? या उसे कर्मयोगी बनने के लिए अपने मौजूदा कार्य को छोड़ देना होगा?

इंसान तीन तरह की प्रवृत्तियों से मिलकर बना होता है, ज्ञान योग में इन तीन प्रवृत्तियों को सत्व, रज और तम कहा जाता है| किसी किसी में इन तीनों में से एक प्रवृत्ति अधिक होती है, किसी किसी में कोई दो या तीन का मिश्रण भी हो सकता है|

जब कभी हम सतोगुण से युक्त होंगे तब हम उत्साह से भरे हुए सकारात्मक और संवेदनशील होंगे| रजोगुण की प्रधानता होने पर हम भोग- विलास सांसारिकता, सुख-सुविधाओं में लिप्त होते दिखाई देंगे| तामसिक गुणों की प्रधानता होने पर निष्क्रिय सुस्त और आलसी नजर आएंगे|

सत्व, रज और तम यह तीनों प्रवृत्तियां है गुण है शक्ति है तत्व है|  इन तीनों का संपूर्ण ज्ञान है कर्मयोग को समझने का माध्यम बनता है| हम सब इन तीनों गुणों के साथ शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे, सही-गलत के बीच झूल रहे हैं| सवाल यह है कि शुभ,सही या अच्छा क्या है? क्योंकि सही या गलत की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है भारत का सैनिक पाकिस्तान के लिए खलनायक है और पाकिस्तान का सैनिक भारत के लिए दुश्मन है जबकि दोनों ही अपने-अपने देश में अपनी अपनी जनता की रक्षा कर रहे हैं|

एक जगह जो सही है वह दूसरी जगह गलत हो सकता है| ऐसी स्थिति में हमें प्रकृति से कुछ सीखना पड़ेगा, प्रकृति अपने आप में कुछ नियमों से बंधी हुई है और प्रकृति ने उन नियमों को मनुष्य को बहुत अच्छे ढंग से समझने की ताकत दी है वही नियम वास्तव में हमें सही और गलत कर्मों में भेद करने का ज्ञान देते हैं| सबसे पहले तो जो भी आप कर रहे हैं उसे पूरी तरह सही या पूरी तरह गलत ना माने जब तक यह निर्धारित ना हो जाए कि यह सही है या गलत है|

हमे हमेशा क्रियाशील रहना है, अकर्मण्यता, आलस, निष्क्रियता पाप है| चाहे आप हिंदुस्तानी हो या अमेरिकी आलसी व्यक्ति कहीं भी स्वीकार्य नहीं है, भारतीय सनातन संस्कृति में निष्क्रियता की अपेक्षा सक्रियता हर हाल में ज्यादा सही कहा गया है| कर्म के मूल में सबसे पहले योग्यता और शक्ति हासिल करना है| बिना कुछ प्राप्त किये त्यागने की बात मूर्खतापूर्ण है| यदि हमारे पास पैसा नहीं है तो हम कैसे धन का त्याग कर सकते हैं|

गरीब व्यक्ति यदि कहे कि मैंने ईश्वर की प्राप्ति के लिए धन का त्याग कर दिया तो सिर्फ हंसी का पात्र बनेगा| क्योंकि जिसके पास धन है ही नहीं वह धन का त्याग कैसे करेगा? कोई कमजोर व्यक्ति अपने दुश्मन से कहें कि जा मैंने तुझे छोड़ दिया वह भी मजाक ही कहा जाएगा, क्योंकि छोड़ वह सकता है जिसके पास छोड़ने लायक कुछ हो| कर्म में क्रियाशीलता का महत्व है सच्ची शांति और सच्चा त्याग संसार में कूदने और सुख और दुख का पूरी तरह उपयोग करने के बाद ही हासिल हो सकता है| हर एक व्यक्ति का अपना कार्य सर्वश्रेष्ठ है| गृहस्थ भी उतना ही श्रेष्ठ है जितना कोई सन्यासी|

भ्रष्ट और सन्यासी दोनों की कर्मों की अलग-अलग व्याख्या हो सकती है| लेकिन दोनों में से किसी एक को श्रेष्ठ नहीं ठहराया जा सकता| गृहस्थ के लिए ईमानदारी से अपने माता पिता की सेवा, अपने बच्चों का पालन पोषण, अपने जीवन साथी का सम्मान और ध्यान रखना कर्तव्य है| और यही उसका कर्म है परिवार पर कोई संकट है तब गृहस्थ अहिंसा परमो धर्म कहकर घर में नहीं बैठ सकता| उसे उस संकट का मुकाबला करना ही होगा| गृहस्थ को परोपकार के कार्यों का बार-बार बखान नहीं करना चाहिए और यदि उसने कुछ गलत कर दिया है तो आगे दोबारा गलती नहीं करने की कोशिश करना चाहिए| ना तो संसार का त्याग करने वाले सन्यासी आलसी और निकम्मे है, नाहीं संसार में रहकर संसार और परिवार के हित में कार्य करने वाले अधर्मी हैं| अपनी-अपनी जगह पर सर्वश्रेष्ठ है|


 

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