दीपावली की रात्रि में वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आने वाले नूतन वर्ष के लिए शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सद्गुरु के श्रीचरणों में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य निरंतर नवीन रस, आत्मरस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष'।
भाई दूज : उसके बाद आता है भाई दूज का पर्व। दीपावली के पर्व का पाँचवाँ दिन। भाई दूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सद्भावना बढ़ाने का दिन है।
हमारा मन एक कल्पवृक्ष है। मन जहाँ से फुरता है, वह चिन चैतन्य सच्चिदानंद परमात्मा सत्य स्वरूप है। हमारे मन के संकल्प आज नहीं तो कल सत्य होंगे ही। किसी की बहन को देखकर यदि मन में दुर्भाव आया हो तो भाई दूज के दिन उस बहन को अपनी ही बहन माने और बहन भी 'पति के सिवाय सब पुरुष मेरे भाई हैं' यह भावना विकसित करे और भाई का कल्याण हो - ऐसा संकल्प करें। भाई भी बहन की उन्नति का संकल्प करें। इस प्रकार भाई-बहन के परस्पर प्रेम और उन्नति की भावना को बढ़ाने का अवसर देने वाला पर्व है 'भाई दूज' ।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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