Published By:दिनेश मालवीय

भगवान् तिरुपति बालाजी के दर्शन के बाद कोई दरिद्र नहीं रहता: दिनेश मालवीय

आये,जानते हैं इस मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य

धर्म, अध्यात्म, संस्कृति और संस्कारों को समर्पित “धर्म पुराण” में आपका एक बार फिर स्वागत है. अनादिकाल से ही भारत दिव्य चेतनाओं से युक्त स्थलों से भरा रहा है. यह वो धरती है, जहाँ स्वयं भगवान् अवतार लेकर आते हैं. हमारे देश के चारों कोनों में अनेक ऐसे अनेक मंदिर स्थित हैं, जहाँ चमत्कारों की अनुभूति बहुत स्पष्ट होती है. इन मंदिरों में रोज़ाना हज़ारों लोग दर्शन कर अपने जीवन को धन्य करते हैं.

इन मंदिरों में आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर बहुत चमत्कारी है. युगों-युगों से ऐसा कहा जाता है, और भक्तों का प्रत्यक्ष अनुभव है, कि लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु के इस स्वरूप के एक बार दर्शन के बाद कोई दरिद्र नहीं रहता. वह ऐश्वर्य के स्वामी हैं. यहाँ भगवान् की हुंडी में भक्त धन और सोने-चाँदी के आभूषण अर्पित करते हैं. मान्यता है, कि इस हुंडी में जो डाला जाता है, वह कई गुणा वापस आता है. भक्तों का यह प्रत्यक्ष अनुभव है. वहाँ से लौटकर जीवन में धन की कमी कभी नहीं रहती.

यह विश्वप्रसिद्ध मंदिर वेंकटाचल पर्वत की तिरुमलै पहाड़ी पर स्थित है. इस पर्वत पर लक्ष्मीजी के साथ श्रृष्टि के पालनकर्ता भगवान् श्रीविष्णु विराजमान हैं. यह पूरा क्षेत्र “कपिल क्षेत्र” के नाम से जाना जाता है. मन्दिर का मूल नाम श्री वेंकटेश्वर मंदिर है.

एक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में प्रहलाद और राजा अम्बरीश इस पर्वत के नीचे से प्रणाम करके चले गए थे. पर्वत को भगवत स्वरूप मानकर वे इसके ऊपर नहीं चढ़े. श्री रामानुजाचार्य पर्वत पर दंडवत करते हुए गये थे.

इस मंदिर की यात्रा बहुत आह्लादकारी होती है. भक्त यात्रा के क्रम में सबसे पहले कपिल तीर्थ में स्नान कर कपिलेश्वर का दर्शन करते हैं. इसके बाद ऊपर जाकर भगवान् वेंकटेश्वर के दर्शन करते हैं. वहां से नीचे आकर गोविन्द राज और तिरुनाचूर में देवी पद्मावती के दर्शन  करते हैं.  कपिल तीर्थ एक बहुत सुंदर सरोवर है, जिसमें पर्वत से जलधारा गिरती है. तीर्थ में चारों कोनों पर चार सतम्भों में में चक्र के प्रतीक बने हैं. सरोवर के दक्षिण में नम्मालावार का मंदिर और और उत्तर पश्चिम में नृसिंह भगवान् की मूर्ति है.

तिरुपति बालाजी के मंदिर की यात्रा में, मुंडन संस्कार का विशेष महत्त्व है. मान्यता है, कि व्यक्ति के बालों के साथ उसके पाप भी वहीं उतर जाते हैं. पुरुष और स्त्रियां दोनों ही यहाँ आने अपने बाल अर्पित करते हैं. सरोवर के पास ही एक विशाल सरोवर है, जहाँ भक्तगण स्नान करके ही मंदिर के दर्शन करने जाते हैं. कहा जाता है, कि वराहावतार के समय भगवान् वराह के आदेश से गरुड़ जी वैकुण्ठ से यह पुष्कारिणी अपने साथ स्नान के लीये लाये थे. इसमें स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है.

सरोवर के मध्य स्थित मंडप में दशावतारों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं. पुष्करणी के पश्चिम भाग में वराह भगवान् का मंदिर है. यह मंदिर तीन परकोटों के भीतर है. परिसर में चार द्वार पार करने पर पांचवें द्वर में श्री बालाजी अर्थात वेंकटेश्वर स्वामी की प्रतिमा स्थित है. यह शंख, चक्र, गदा पद्मधारी है. माना जाता है, कि भगवान् के इस रूप में माँ लक्ष्मी समाहित हैं, जिसके कारण उन्हें स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाये जाते हैं.

मंदिर में दिया सदा जलता रहता है. चमत्कार यह है, इस इस दीपक में कभी तेल या घि नहीं डाला जाता. यह तक पता नहीं है, कि यह दीपक सबसे पहले किसने और कब जलाया था. मान्यता है, कि इस पतिमा को पसीना आता है और इसके केश असली हैं.  

भगवान् की प्रतिमा एक विशेष पत्थर से निर्मित है,जिसके दर्शन कर अनुभव होता है, जैसे साक्षात भगवान् के दर्शन कर लिए.  गर्भगृह से बाहर निकलते ही ऐसा अचम्भा होता है, कि ऐसा लगता है, भगवान् की प्रतिमा दाहिनी ओर स्थित है. इसे इस तरह स्थापित किया गया है,कि मंदिर  में आने वाले हर भक्त को एक सामान अनुभव होता है. इसका रहस्य आजतक कोई नहीं समझ पाया.

दूसरे द्वार को पार करने पर प्रदक्षिणा में योग नृसिंह श्री वरदराज(विष्णु), श्री रामानुजाचार्य, सेनापति गरुड़ और रसोई में बकुल मालिका के मंदिर हैं.

श्री बालाजीका एक दर्शन प्रात:, एक मध्यान्ह और एक दर्शन रात्रि में होता है. मंदिर में मध्यान्ह दर्शन के बाद प्रसाद मिलता है. “भात प्रसाद” नि:शुल्क मिलता है. भात को “रसम” के साथ खाया जाता है. इसका स्वाद बहुत अद्भुत होता है. भगवान् को अर्पित लड्डू प्रसाद का स्वाद कोई जीवन भर नहीं भुला सकता.

तिरुपति बालाजी के आसपास कुछ अन्य तीर्थ भी हैं. इनमें आकाशगंगा प्रमुख है. यह बालाजी मंदिर से दो मील दूर वन में स्थित है. यहाँ पर्वत से एक झरना बहता है. आकाशगंगा से एक मील आगे पापनाशक तीर्थ है. बालाजी से दो मीलपूर्व में पर्वत  पर वैकुण्ठ गुफा से जलधारा निकलती है. इसके अलावा उत्तर-पश्चिम में पाण्डव तीर्थ है, जहाँ द्रौपदी सहित पाण्डवों मूर्तियाँ हैं. आगे जाबालि तीर्थ है. इसके अलावा, तिरुपति बाज़ार में श्री गोविन्दराज का विशाल मंदिर है. यहाँ श्रीरामानुजाचार्य की गद्दी है. इस मंदिर में और अन्य भी 15 छोटे-छोटे मंदिर हैं.

तो देर किस बात की है. निकल पढ़िए श्री तिरुपति बालाजी का दर्शन कर जीवन को धन्य करने के लिए. वहां जाकर आपको एक अलौकिक आनंद प्राप्त होगा.

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