Published By:धर्म पुराण डेस्क

वेदत्रयी का प्रतिनिधि

ॐ ही सब कुछ है ॐ ही आपका यथार्थ नाम है।

ॐ में ही मानव को तीनों प्रकार के अनुभवों का ज्ञान हो जाता है। सभी दृष्टिगोचर लोकों के लिए ॐ का ही प्रयोग होता है ॐ से ही इंद्रियगम्य जगत की उत्पत्ति हुई है। ॐ में ही जगत स्थित है और ॐ में ही इसका लय होता है।

'अ' स्थूल स्तर का प्रतीक है। 'उ' सूक्ष्म तत्त्व व आत्माओं के जगत तथा ऊपर के लोकों का प्रतीक है। 'म' सुषुप्तावस्था का प्रतीक है, जाग्रतावस्था में भी अज्ञान का तथा बुद्धि द्वारा अगम्य तत्वों का प्रतीक है। ॐ सबका प्रतीक है। ॐ ही आपके जीवन, विचार और बुद्धि का आधार है ।

सब प्रकार की त्रयी का प्रतीक ॐ ही है- जैसे ब्रह्मा-विष्णु-महेश, अतीत-वर्तमान-भविष्य, उत्पत्ति-स्थिति-लय और जाग्रत- स्वप्न सुषुप्ति।

सभी त्रिमूर्तियों का प्रतीक भी ॐ ही है - जैसे सरस्वती- लक्ष्मी दुर्गा, पिता-पुत्र- पवित्रात्मा, सत्त्व- रजस्-तमस्, शरीर- मन-आत्मा, सत्-चित्-आनंद, सर्वज्ञ-सर्वशक्तिमान-सर्वव्यपक और स्थूल सूक्ष्म-कारण। 'अ' ब्रह्म है। 'म' माया है। 'उ' दोनों की क्रियाओं का संयोजक है।

'ॐ' तत्त्वमसि महावाक्य का भी प्रतीक है। 'अ' जीव, 'म' ईश्वर तथा 'उ' जीव और ईश्वर अथवा ब्रह्म की एकता का प्रतीक है।

ॐ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसकी पूजा करनी चाहिए। इसका उच्चारण ऊँचे स्वर से करना चाहिए। ॐ का भावपूर्ण मानसिक जप भी करना चाहिए। इसी पर ध्यान भी करना चाहिए।
 

धर्म जगत

SEE MORE...........