सब पदार्थों का ज्ञान ध्वनियों द्वारा होता है। सभी ध्वनियाँ ॐकार में लय हो जाती हैं। वाणी अथवा शब्द समूह का अंत भी एक ॐ में लय हो जाता है।
सब ध्वनियों का उद्गम स्थान ॐ ही तो है। नवजात शिशु का 'उँवाँ……. उँवाँ...' रुदन, मक्खियों की भिनभिनाहट, घोड़ों की हिनहिनाहट, नागों की फुंफकार, वक्ता के भाषण पर श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट, मृदंग तथा नगाड़ों की थाप, सिंह की दहाड़, रोगियों की कराह, वंशी की सुमधुर ध्वनि, बुलबुल पक्षी का मधुर गान, संगीत में 'राग' के सातों स्वर तथा प्रेमी के हृदयस्पर्शी गीत के स्वर - ये सब ॐ से ही निःसृत हुए हैं।
गंगा की कलकल ध्वनि, मंडी बाजार का कोलाहल, इंजन के पहिये के चलने की झनझनाहट, वर्षा की बूँदों की टप टप आदि सब ॐ के ही विभिन्न रूप हैं।
ॐ ही सब अक्षरों का आधार है। ॐ के तीन स्वर हैं : अ-उ-म । इन अ -उ-म में सभी कंपन समा जाते हैं। कंठनली तथा तालू ध्वनि कारक अंग हैं। 'अ' के कहने पर जिह्वा तालू या अन्य किसी स्थान को छूने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
'उ' का उच्चारण तो मुख के ध्वनिकारक अंग के मूल के किनारे से होता है। अंतिम स्वर 'म' दोनों होठों के बंद करने से निकलता है। अतः सभी ध्वनियाँ ॐ में ही केन्द्रित हैं। सभी भाषाओं का उद्गम स्थान ॐ ही है।
47 चारों वेदों का सार केवल ॐ ही है। जो भी ॐ का उच्चारण करता है, मानो जगत भर के पवित्र ग्रंथों का पाठ कर लेता है। ॐ ही समस्त धर्मों व शास्त्रों का स्रोत है। 'ॐ... आमीन... अहमिन...' एक ही शब्द के भिन्न रूप हैं। वे सत्य अथवा ब्रह्म के प्रतीक हैं। ॐ के बिना कोई पूजा हो ही नहीं सकती।
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