Published By:धर्म पुराण डेस्क

ओंकारेश्वर: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर हिंदुओं की चरम आस्था का केंद्र...

ओंकारेश्वर: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर हिंदुओं की चरम आस्था का केंद्र...

ओंकारेश्वर: 

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में चौथा ओम्कारेश्वर है. ओंकार का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था. वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है. उसी ओंकार स्वरूप ज्योतिर्लिंग श्री ओम्कारेश्वर है, अर्थात यहाँ भगवान शिव ओमकार स्वरूप में प्रकट हुए हैं. 

ज्योतिर्लिंग वे स्थान कहलाते हैं जहाँ पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे एवं ज्योति रूप में स्थापित हैं. प्रणव ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पाप भस्म हो जाते है.

पुराणों में स्कन्द पुराण, शिव पुराण व वायु पुराण में ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा उल्लेख है. ओंकारेश्वर में कुल 68 तीर्थ है. यहाँ 33 कोटि देवता विराजमान है. दिव्य रूप में यहाँ पर 108 प्रभावशाली शिवलिंग है. 84 योजन का विस्तार करने वाली माँ नर्मदा का विराट स्वरूप है. 

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रमुख शहर इंदौर से 77 किमी की दूरी पर है. एवं यह ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित है. भगवान शिव प्रतिदिन तीनो लोकों में भ्रमण के पश्चात यहां आकर विश्राम करते हैं. अतएव यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव की विशेष शयन व्यवस्था एवं आरती की जाती है तथा शयन दर्शन होते हैं.

ओंकारेश्वर महेश्वर से अल्प दूरी पर ओंकारेश्वर स्थित है। ओंकारेश्वर का प्राचीन नाम मान्धाता है। देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसकी गणना की जाती है। 

ओंकारेश्वर में नर्मदा घाट, चौबीस अवतार, सिद्धनाथ मंदिर, मार्कंडेय आश्रम, ममलेश्वर महादेव सहित अन्य स्थल दर्शनीय हैं। ओंकारेश्वर के तट पर ही आदि शंकराचार्य के गुरु श्री गोविंद पादाचार्य का आश्रम था। उनकी गुफा आज भी है जिसे देखने के लिए लाखों लोग पहुंचते हैं। 

ओंकारेश्वर के करीब ही महेश्वर में निवास करने वाले आचार्य मंडन मिश्र से शंकराचार्य के शास्त्रार्थ को आज भी याद किया जाता है। मान्यता के अनुसार आदि शंकराचार्य भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं और उनका जन्म केरल में हुआ था। उस समय यानी 650 ईसवी के बाद भारत की स्थिति अराजक हो रही थी. 

साम्राज्य की इच्छा रखने वाले राज्यों कश्मीर, कन्नौज और गौंड के युद्ध ने और फिर पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट नरेशों की लड़ाइयों ने उत्तर को तो दक्षिण में चालुक्य, पार्श्व और पाण्ड्य शासकों की आपसी मारकाट और भीषण लड़ाइयों ने विचलित कर रखा था। पश्चिम से अरब सेनाओं और व्यापारियों के प्रवेश से भी स्थितियां विकराल हो रही थीं। शंकराचार्य इसी संक्रांति काल में भारत में अवतरित हुए। उन्होंने प्रखर जान और साधना के बल से वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा में स्वयं को समर्पित किया। 

आदि शंकराचार्य यात्रा करते हुए वर्तमान मध्य प्रदेश के नर्मदा किनारे बसे औंकारेश्वर में आए थे। उनसे संबंधित औंकारेश्वर, उज्जैन, पचमठा (रीवा) और अमरकंटक मध्य प्रदेश में स्थित है। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि ओंकारेश्वर का पुराना नाम मांधाता था। यहां की पहाड़ी को भी मांधाता कहा जाता है। 

ऐसा माना जाता है कि यहां के राजा मांधाता ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ओम आकार के इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई और इसे ओंकारेश्वर मांधाता नाम दिया था। इसी स्थान पर गुरु के सान्निध्य में आदि शंकराचार्य ने अपना लेखन चार वर्ष में पूर्ण किया। तभी पांच दिनों तक हुई मूसलाधार वर्षा से नर्मदा में बाढ़ आ गई। इस भीषण आपदा से उत्पन्न मानव पीड़ा से द्रवित शंकराचार्य ने मां नर्मदा से की स्तुति में नर्मदाष्टकम' का पाठ किया, जिसके बाद बाढ़ उतरने लगी। 

गुरु गोविंद पादाचार्य अपने शिष्य की यौगिक शक्ति देख कर संतुष्ट हुए और उन्हें बुलाकर चारों दिशाओं में वेदांत के अद्वैत सिद्धांत प्रतिपादित करने का आदेश दिया। 

ओंकारेश्वर मांधाता: दिशा, श्रेणी, एडवेंचर, ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक, मनोहर सौंदर्य.

ओंकारेश्वर मांधाता नर्मदा नदी के मध्‍य द्वीप पर स्थित है। दक्षिणी तट पर ममलेश्‍वर (प्राचीन नाम अमरेश्वर) मंदिर स्थित है। ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है। इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग माना जाता है। 

खंडवा से 75 कि.मी. इंदौर-खंडवा हाईवे पर। यह हिंदुओं का एक पवित्र स्थान है। ओंकार ममलेश्वर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक और जैन संप्रदाय के सिद्धवरकूट इस स्थान पर स्थित है। दोनों संप्रदायों और विदेशियों के लाखों श्रद्धालु हर साल आते हैं। 

अद्वैत के प्रणेता आदि गुरु शंकराचार्य के गुरु गोविंद जी की गुफा, सिद्धनाथ के भव्य मंदिर के भग्नावशेष, गौरी सोमनाथ का मंदिर, ऋण मुक्‍तेश्‍वर मंदिर इस स्थान पर स्थित है। द्वीप के प्रणवाक्षर “ॐ” के आकार के कारण ही इस स्थान का नाम ओंकारेश्वर है।

जैन धर्म का तीर्थ सिद्धवरकूट भी नजदीक ही स्थित है। यहां पर जैन धर्म के कई प्राचीन मंदिर हैं इनमे से कुछ का नवीनीकरण किया गया है। यहॉं की चित्रावलियों से प्रतीत होता है कि लगभग 1488 ई0 के आसपास की हैं। चित्रों में प्रमुखतः तीर्थंकर भगवान श्री शांतिनाथ जी का वर्णन है। 

सिद्धनाथ मंदिर, ओंकारेश्वर,

ओंकारेश्वर बांध का ओंकार बिन्दु से दृश्‍य,

ओंकारेश्वर मंदिर, मांधाता,

कैसे पहुंचें:

बाय एयर: देवी अहिल्याबाई होलकर विमानपत्तन इंदौर यहां से सबसे समीपस्थ विमान पत्तन है जो 84 किमी है।

ट्रेन द्वारा:

नजदीकी शहरों इंदौर और खंडवा दोनों जगह रेल मार्ग है जहाँ से टैक्सी उपलब्ध रहती है ।

सड़क के द्वारा:

खंडवा से 70 किमी दूरी पर इंदौर एदलाबाद रूट पर है । इंदौर से 84 किमी इसी सड़क पर है।


 

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