Published By:दिनेश मालवीय

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा से बरसता है अमृत, आज ही श्रीकृष्ण ने निधिवन में रचाया था महारास.. दिनेश मालवीय

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा से बरसता है अमृत, आज ही श्रीकृष्ण ने निधिवन में रचाया था महारास.. दिनेश मालवीय

 

शरद पूर्णिमा की रात को जिसने भी चंद्रमा को ध्यान से नहीं देखा, उसने प्रकृति के एक अद्भुत आनंद का अवसर खो दिया. भारत में शरद पूर्णिमा से हमारे देश में औपचारिक रूप से शरद ऋतु या सर्दी का मौसम शुरू हो जाता है. हज़ारों साल से हमारे पूर्वजों की यह मान्यता है, कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है. इसलिए सनातनी हिन्दू परिवारों में शाम को खीर बनाकर छत पर रख दी जाती है. ऐसा माना जाता है, कि रातभर में इस खीर में अमृत तत्व का प्रवेश हो जाता है. सुबह उसे ईश्वर का प्रसाद मानकर ग्रहण किया किया जाता है. आखिर सारी वनस्पतियों का जीवनदाता चंद्रमा ही तो है. वही उनका पोषक है.

 

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शरद पूर्णिमा की रात को आयुर्वेद के देवता भगवान् धन्वन्तरी की पूजा का भी बहुत महत्त्व है. अनेक आयुर्वेदाचार्य खीर में औषधि मिलाकर दमा के रोगियों को सेवन कराते हैं. इसके अलावा और भी अनेक प्रकार के अनुष्ठान होते हैं. लोग ईश्वर का ध्यान,भजन,कीर्तन, पाठ  या जप करते हैं. पूरी पवित्रता से रहते हैं. अनेक स्थानों पर भगवान् को उनकी योगशक्ति श्रीराधाजी के विग्रह को समारोहपूर्वक नौका विहार कराया जाता है. उनके साथ भक्तगन भजन-कीर्तन करते हुए नौका विहार का आनंद लेकर जीवन को धन्य महसूस करते हैं.

 

 

इस पर्व का महत्त्व इस बात के कारण सबसे अधिक है, कि शरद पूर्णिमा की रात को भगवान् श्रीकृष्ण ने वृन्दावन के निधिवन में धवल चाँदनी में गोपियों के साथ  “महारास” रचाया था. भगवान् की यह कोई मामूली लीला नहीं थी. इसके बहुत से प्रतीकात्मक अर्थ भी हैं, जिन्हें समझकर भक्त ईश्वर के साथ एकाकार हो सकता है. संतों के अनुसार रास का अर्थ है “रसो वै स:”. अर्थात ईश्वर वास्तव में रस स्वरूप है. भगवान् श्रीकृष्ण साक्षात रसावतार हैं. भगवान् के साथ रास रचाने वाली गोपियाँ कोई साधारण स्त्रियाँ नहीं थीं. वे श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबी ऐसी भक्त स्त्रियाँ थीं, जिन्हें श्रीकृष्ण के अलावा संसार में कुछ भी सार्थक नज़र नहीं आता था. वे आठों प्रहार उनके ही ध्यान में डूबी रहती थीं. यह जीवन के परम आनंद का अवसर था,जिसमें गोपियों ने अपने आराध्य भगवान के साथ अपने एकत्व का अनुभव किया.

 

 

इस महारास का कवियों ने बहुत आह्लादकारी वर्णन कर अपनी लेखनी को सार्थक किया है. शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपने पूर्ण तेज के साथ चमक रहा था. श्रीकृष्ण निधिवन में खड़े होकर अपनी भुवनमोहिनी बाँसुरी बजा रहे थे. उनकी बाँसुरी की तान सुनकर गोपियाँ सबकुछ भूलकर वहां दौड़ी चली आयीं. उनके ह्रदय श्रीकृष्ण से मिलन के लिए तड़प उठे.  इन गोपियों के मन में श्रीकृष्ण की भक्ति के सिवा कोई कामना या इच्छा नहीं रह गयी थी.  वे श्रीकृष्ण के चरणों से लिपट गयीं. उन्होंने कहा, कि प्रिय श्रीकृष्ण हमें कभी मत छोड़ना, क्योंकि तुम ही हमारे भगवान् और सर्वस्व हो. हमारे सारे आनंद का स्रोत  तुम्हीं हो.

 

 

गोपियों के निश्छल और नि:स्वार्थ प्रेम से अभिभूत होकर श्रीकृष्ण ने उनके साथ अद्भुत नृत्य किया. इसकी यह विशेषता थी, कि हर एक गोपी को यह लग रहा था, कि श्रीकृष्ण उसीके साथ नृत्य कर रहे हैं. हर गोपी को लग रहा था, कि  वही उनकी सबसे प्रिय गोपी है. इस बात को लेकर गोपियों के मन में अहंकार आ गया. भगवान् भक्त के अहंकार को सहन नहीं करते. भक्तों का अहंकार ही उनका भोजन है. गोपियों के मन में जैसे ही अहं भाव आया, वैसे ही श्रीकृष्ण उनकी आँखों से ओझल हो गये. गोपियों ने देखा, कि श्रीकृष्ण नहीं हैं, तो वे विरह से बिलखने लगीं. वे उन्हें खोजने बदहवास-सी यहाँ-वहाँ दौड़ने लगीं. विरह में उनकी आँख से बहे आँसुओं में उनका अहं बह गया. जैसे ही गोपियाँ अहं से मुक्त हुयीं, श्रीकृष्ण फिर उनके सामने आ गये. उन्होंने श्रीकृष्ण को फिर से अपने साथ पाया.

 

 

गोपियों ने श्रीकृष्ण को इस तरह आँखों से ओझल होने पर कुछ उलाहना दिया, लेकिन वे उनसे रुष्ट नहीं थीं. उन्होंने पूछा, कि क्या तुम संतों-योगियों की तरह निर्मोही हो? इस पर श्रीकृष्ण ने कहा, कि वह अपने भक्तों के मन से अहंकार को ख़त्म करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं.  इस वार्तालाप के बाद महारास  फिर से शुरू हो गया.  स्वर्ग से देवता उसे देखकर अपने नेत्रों को धन्य करने लगे.  उन्होंने आकाश से पुष्प वर्षा की. उन्हें प्रत्येक गोपी में श्रीकृष्ण ही दिखाई दे रहे थे.

 

 

अंत में एक गोपी उस घेरे को तोड़कर बाहर आई और उसने श्रीकृष्ण का आलिंगन किया. वह राधा थीं. इसके बाद राधा और कृष्ण बीच में खड़े थे और बाक़ी सभी गोपियाँ उनके चारों तरफ नृत्य कर रही थीं. रासलीला करते-करते सभी गोपियों ने उसी आनंद का अनुभव किया, जो योगी समाधि अवस्था में  करते हैं. संत इसका एक सांकेतिक अर्थ बताते हैं, कि मन की सारी वृत्तियाँ गोपी हैं और परम चेतन आत्मा श्रीकृष्ण. साधक जब सभी वृत्तियों को अपने आत्मा में केन्द्रित कर लेता है, तो उसे समाधि अथवा महारास के परम आनंद की प्राप्ति होती है.

 

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