 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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‘परमेश्वर की अप्राप्ति' के दुःख की दलदल में ही मोक्ष का कमल खिलता है। लेकिन दुःख सहन करने के लिये मनोनिग्रह और इन्द्रियनिग्रहः की आवश्यकता होती है। रोग, द्वेष, काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर परमेश्वर प्राप्ति के रास्ते में रोड़ा बने रहते हैं। उनको हटाने के लिये श्रद्धा, विवेक, संयम, धैर्य और लगन की आवश्यकता होती है।
मन वायु की तरह चंचल होता है, उसको काबू में रखना महाकठिन काम है, सब आचारों और विचारों की लड़ाइयाँ मन की रणभूमि पर ही खेली जाती हैं। मन नरक को स्वर्ग या स्वर्ग को नरक भी कर सकता है।
इसलिये कहा जाता है- 'जिसने मन को जीता, उसने जग को जीता।' लेकिन बुद्ध या महावीर जैसा कोई बिरला ही मन को जीत सकता है। मनोनिग्रह करने के लिये कठोर साधना, लगातार प्रयत्न और वैराग्य अपनाना पड़ता है। उसके लिए कोई शॉर्टकट नहीं। धैर्य के बिना सब बातें असम्भव हैं।
संत कबीर कहते हैं-
धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय ॥
'हे मन ! धीरज से काम ले। धीरे-धीरे सब कुछ होता है। माली पेड़-पौधों को सैकड़ों घड़ा पानी डालता है। लेकिन उन पर फल मौसम आने पर ही लगते हैं। कोई भी काम झटपट नहीं होता।
अंग्रेजी में एक कहावत है- We need a drop of understanding, Barrel of love and Ocean of patience. अर्थात् चाहे संसारिक हो या पारमार्थिक कोई भी जीवन में हमें एक बूँद समझ की, एक पीपा प्रेम की और सागर-जितने धैर्य की आवश्यकता होती है। धैर्य ही कामयाबी का निर्धारक है। जल्दबाजी हानिकारक होती है।
आज के जमाने में मनुष्य अधीर बन गया है, वह हर कार्य का नतीजा झटपट चाहता है। यांत्रिक साधनों से कुछ हद तक उसको कामयाबी भी मिल जाती है। लेकिन यंत्राधीन होने के कारण उसकी प्रतिकार एवं सहनशक्ति घट गयी है। जरा-सी प्रतिकूल परिस्थिति आते ही वह धैर्य खो बैठता है। छोटी-छोटी बातों से अस्वस्थ और अशान्त हो जाता है। इसी कारण से आत्म हत्याएँ बढ़ रही हैं। परिस्थिति के साथ संघर्ष करने की ताकत कम हो रही है। 'साहसे श्रीप्रतिवसति' अर्थात् कामयाबी या धनलक्ष्मी साहसी और धैर्यवान मनुष्य के साथ ही रहती है, इस सन्दर्भ में सुभाषितकार कहता है-
उद्यमं साहसं धैर्य बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत् ॥
'उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम- ये छः गुण जिसके पास होते हैं, उसका भाग्य खुलता है।'
 
 
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