 Published By:धर्म पुराण डेस्क
 Published By:धर्म पुराण डेस्क
					 
					
                    
मानव जीवन की भव्य इमारत संस्कृति की नींव पर टिकी है। संस्कार दो प्रकार के होते हैं। अच्छा और बुरा, संस्कार कोई भी हो संस्कार अपना फल देता है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसे धीरे-धीरे परिस्थितियों के अनुसार अच्छे विचारों, संस्कारों, दया, भावनाओं, स्नेह, प्रेम का ज्ञान दिया जाता है। ऐसी शिक्षा माता-पिता घर में ही देते हैं। पहले के समय में जब बालक बारह वर्ष का होता था तो उसे संस्कृत के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी जाना पड़ता था। संदीपनी ऋषि के आश्रम में रहकर ही सुदामा और श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी। गुरुकुल संस्थाएं बच्चों को कम उम्र से ही शिक्षा देती हैं।
संस्कार भी वंशानुगत होते हैं। कुछ अपवाद भी मिलते हैं। ऐसे कई मामले हैं जहां पिता बेटे के उलट होते है। कई मामलों में बेटा पिता से बेहतर होता है। कई बार दीये तले अंधेरा होता है।
आज आदमी फैशन और दिखावे में लगा है। जिससे संस्कार और संस्कृति लुप्त होती जा रही है। सत्य, अहिंसा, सदाचार और सद्भावना से दुष्ट, तत्व, असत्य, विश्वासघात, ईर्ष्या और विनाशकारी तत्वों पर विजय प्राप्त हो रही है। संस्कारों को बचाना है। संस्कार मनुष्य के आभूषण हैं।
शिक्षा और संस्कृति परस्पर जुड़े हुए हैं। शिक्षा मानव जीवन की अनमोल निधि है जो व्यक्ति के जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल देती है और संस्कृति जीवन का सार है जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण और विकास होता है।
मनुष्य जब शिक्षा और संस्कार दोनों का विकास करेगा तभी वह परिवार, समाज और देश के विकास की ओर अग्रसर होगा। शिक्षा केवल किताबी ज्ञान ही नहीं चारित्रिक ज्ञान भी है जिसे आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम भूल चुके हैं। हम अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाकर संतुष्ट हैं लेकिन हमारी उपेक्षा हमारे बच्चों को भटका रही है। आज के अधिकांश बच्चे संभ्रांत हैं लेकिन स्मार्ट नहीं हैं।
समाज को बदलने के लिए मनुष्य में अच्छे गुणों का होना आवश्यक है और इसकी नींव हमें अपने बच्चों के बचपन में रखनी चाहिए। बच्चों को तीन गुण हासिल करने चाहिए। ज्ञान, कर्म और विश्वास। ये तीन गुण उसके जीवन में बदलाव लाएंगे और वह परिवार, समाज और देश की सेवा में आगे बढ़ेगा।
अनैतिकता का देशव्यापी प्रदूषण जो आज हमारे समाज और देश को दूषित कर रहा है, वह केवल बच्चों में नैतिकता और शिक्षा की कमी के कारण है, जिसके लिए हम दोषी हैं। अपने झूठे दिखावे के लिए हम अपने बहुमूल्य भारतीय मूल्यों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर हम और हमारे बच्चे पथभ्रष्ट हो रहे हैं।
सुंदर चरित्र शिक्षा का अंतिम लक्ष्य है। शिक्षा से व्यक्ति के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास होता है। बच्चों में सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की शिक्षा आवश्यक है क्योंकि शिक्षा हमें आजीविका देती है और संस्कृति जीवन को अनमोल बनाती है।
शिक्षा में ही संस्कृति शामिल है। यदि हमारे बच्चों में भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्पराओं, भाईचारे, एकता आदि के बीज बोए जाते हैं तो वे अपने मूल्यों का विकास करते हैं, जिसके लिए माता-पिता, परिवार और शिक्षक जिम्मेदार होते हैं।
बचपन में परिवार के बाद खासकर बच्चों को स्कूल में संस्कार सिखाए जाते हैं। इसलिए शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह कक्षा और खेल के मैदान में ऐसा माहौल तैयार करे जहां बच्चों में शिक्षा और संस्कार दोनों का विकास हो।
बच्चों में अनुशासन, आत्मसंयम, उत्तरदायित्व, आज्ञाकारिता, विनम्रता, सहानुभूति, सहयोग, प्रतियोगिता आदि गुणों का विकास करने के लिए विद्यालय स्तर पर ऐसी गतिविधियों का आयोजन किया जाना चाहिए।
सरकारी स्कूलों में ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों से मजदूर वर्ग के बच्चे पढ़ने आते हैं। उनके माता-पिता इतने संभ्रांत नहीं हैं कि वे अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन कर सकें। इसलिए सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को और मेहनत करने की जरूरत है। बच्चे देश का भविष्य हैं, उन्हें कुशल नागरिक बनाना हम सबका परम कर्तव्य है।
हमेशा सच बोलो, दूसरों की मदद के लिए तैयार रहो, माता-पिता, शिक्षकों और बड़ों का सम्मान करो, ईश्वर में विश्वास रखो, धैर्य रखो, कर्तव्यनिष्ठ बनो, सबके साथ प्यार से पेश आओ आदि।
गुंजन कुमार
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024 
                                यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024 
                                लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024 
                                संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024 
                                आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024 
                                योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024 
                                भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024 
                                कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                