Published By:धर्म पुराण डेस्क

परमात्मा: एकता की अनुपमता का प्रतीक

जीवन की अनगिनत रूप रेखाओं में हम परमात्मा की अनुपमता का अनुभव करते हैं, जैसे कि सोने के आभूषण विभिन्न आकारों, रूपों और डिज़ाइनों में होते हैं, परंतु उनकी मूल बनावट सोने की ही होती है। इसी तरह, परमात्मा के नाम और रूप विभिन्न हो सकते हैं, परंतु उनका मूल आदित्यता और एकता में ही समाहित है।

"राम, श्याम, शिव: एकता के विभिन्न पहलू"

हमारे संस्कृति में परमात्मा के विभिन्न नाम और रूप विभिन्न भगवानों के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जैसे कि राम, श्याम, शिव आदि। परंतु सबके मूल में, परमात्मा की एकता और एकमता होती है। यह हमें यह सिखाता है कि विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में भी एक परमात्मा की अद्वितीयता की प्रतिष्ठा है।

"परमात्मा: सभी का मूल और आत्मा"

हमारे आसपास देखें, हर जीव अपने आत्मा के रूप में अद्वितीयता के बावजूद सभी में एक समानता होती है - वो है परमात्मा की आत्मा। जैसे कि सोने के आभूषण अलग-अलग हो सकते हैं, परंतु उनका मूल एक ही होता है, ठीक वैसे ही हम सभी भगवानों के नामों और रूपों के पीछे उनकी अनन्त एकता को समझते हैं।

"अनुभव: परमात्मा की अद्वितीयता का विश्वास"

यही अनुभव हमें सिखाता है कि चाहे हम किसी भी धर्म या संस्कृति के हों, हम सभी एक ही परमात्मा के अंश हैं और वो हमारे आत्मा का मूल है। इस विश्वास के साथ हम समाज में एकता, सद्भावना, और सहयोग की मानसिकता बढ़ा सकते हैं।

इस प्रकार, परमात्मा के अद्वितीय एवं एकता की अद्भुतता को समझकर हम जीवन में सही मार्ग पर चल सकते हैं और सभी के साथ एक उत्तम समाज की रचना कर सकते हैं।

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