Published By:धर्म पुराण डेस्क

पेरेंटिंग, बच्चों के खेल, भेदभाव और सही तरीका

सहजता है जरूरी-

बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास के दौरान उनकी आदतों में कई तरह बदलाव आते हैं, जिन्हें पैरेंट्स को भी सहजता से स्वीकारना चाहिए। 

लगभग चार-पांच साल की उम्र तक बच्चे अपनी जेंडर आइडेंटिटी से बेफिक्र होते हैं। उन्हें नई चीजें बहुत आकर्षित करती हैं। इसलिए वे सभी तरह के खिलौनों से खेलना पसंद करते हैं। 

कई बार तो वे अपने टॉयज को छोड़कर घर में पड़ी बेकार चीजों से खेलकर भी बहुत खुश होते हैं। दरअसल, इन्हीं तरीकों से वे नई वस्तुओं से परिचित होना सीखते हैं। 

लड़कियों की तरह लड़कों का भी डॉल से खेलना स्वाभाविक है लेकिन पेरेंट्स उन्हें बार-बार याद दिलाते हैं कि तुम्हें अपनी बहन के खिलौनों से नहीं खेलना चाहिए या गन से तो बॉयज खेलते हैं। उम्र के इस दौर में बच्चों के साथ बहुत ज्यादा रोक-टोक करने के बजाय उन्हें सहज ढंग से खेलने और अपने अनुभवों से सीखने की आजादी देना चाहिए।

बच्चों का कंफर्ट जोन-

छह-सात साल की उम्र के बाद भावनात्मक और सामाजिक विकास के साथ बच्चे खुद को बॉय या गर्ल के तौर पर स्वीकारने लगते हैं। इस दौर में वे अपने जैसे लोगों के साथ ज्यादा सहज होते हैं। इसलिए आपने भी नोटिस किया होगा कि इस उम्र में खेल के दौरान लड़कियों और लडकों के अलग-अलग ग्रुप्स बन जाते हैं और वे अपने ग्रुप के बच्चों के साथ ही रहना पसंद करते हैं क्योंकि उनके कपड़े, एक्सेसरीज और हॉबीज में काफी समानता होती है। 

इससे वे अपनी रुचि से जुड़े टॉपिक्स पर सहजता से बातचीत कर पाते हैं। इस तरह लड़के-लड़कियों के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर नोक-झोंक भी चलती रहती है। 

लड़के खुद को बहादुर समझते हैं और लड़कियों को डरपोक कहकर चिढ़ाते हैं, वहीं लड़कियां अपने आप को सलीकेदार और लड़कों को लापरवाह समझने लगती हैं। यही वह समय है, जब हमें अपने बच्चे को अपोजिट सेक्स का सम्मान करना सिखाना चाहिए। 

लड़कों को यह बताना जरूरी है कि लड़कियां तुमसे अलग जरूर दिखती हैं पर वे भी तुम्हारी दोस्त बन सकती हैं। इसी तरह लड़कियों को भी यह समझना चाहिए कि बॉयज थोड़े नॉटी जरूर होते हैं पर तुम्हें भी उनके साथ खेलना चाहिए।


 

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