एक झपकी सुकून वाली-
बच्चों को सोते हुए देखा है न, कितने प्यारे और मासूम लगते हैं। दुनिया की परेशानियों से दूर सुकून भरी नींद में खोए हुए और दूसरी ओर हमें नींद के समय भी हजारों परेशानियां याद आ जाती हैं।
कल ये काम करना है, ऑफिस का ये टारगेट अधूरा रह गया, कामवाली फिर से नहीं आई, फिक्र ने हमारी नींद को भी फुर्र कर दिया है तो बच्चों से सीखें चैन भरी नींद सोना, उन्हें कल की क्या, अगले पल की भी चिंता नहीं, तो बस थोड़ा उनकी तरह बन जाएं। कल क्या होगा उसे कल देखेंगे। एक झपकी सुकून की ली जाए।
चंचलता ले उधार-
माना कि बचपन को फिर से नहीं पाया जा सकता पर हम बच्चों से उनकी चंचलता तो उधार ले सकते हैं न। उनके पास खिलौने नहीं हों तो वे कटोरी चम्मच को ही खिलौना बनाकर भी खुश रहते हैं और हम जिंदगी में छोटी-छोटी चीजों के लिए शिकायतें करते रहते हैं। तो क्यों न हम भी बच्चों की तरह चंचल बन जाए। जिंदगी के छोटे-छोटे पलों 'को जी भर कर जीएं। उनकी तरह बेवजह खुश होना सीखें।
भरपूर मस्ती करें-
आप चाहे गृहिणी हों या वर्किंग, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अपनी जिम्मेदारियों के बोझ को थोड़ा-सा हटाइए, क्या हो गया अगर एक दिन घर बिखरा रह गया, क्या हो गया यदि एक दिन ऑफिस का काम अधूरा रह गया? थोड़ी-सी मस्ती करने में क्या जाता है।
अपने बोझिल पलों से ब्रेक लें और अपने पसंदीदा गाने चलाएं और बच्चों की तरह थिरके। थोड़ा-सा बचपना दिखाएं और इन पलों को अपनी मुट्ठी में कर लें। ये छोटी-छोटी खुशियां आपके बोझिल दिन को भी मजेदार बना देंगी।
बचपन कहीं खोया नहीं है, वह आपके आसपास ही है। उसे अपने बच्चों के बचपन में ढूंढिए उनके बचपने को अपनाइए और खुद में छुपा वह प्यारा-सा बच्चा बाहर लाइए, जो भरपूर जीना चाहता है। तो क्यों न कुछ पल बचपन के नाम कर दिए जाए।
खेले बच्चों के गेम्स-
बचपन के खेल कितने मजेदार होते थे। खो-खो, पकड़ा पकड़ी, सितौलिया... लेकिन फिर हम बड़े हो गए और हमारे खेल हमारे बचपन के साथ ही गुम हो गए। तो क्यों न एक बार फिर उन यादों को दोहराया जाए।
बच्चों के साथ पार्क जाएं तो बतियाने के बजाय अपने बच्चों और उसके दोस्तों को इकट्ठा करें और खेलें वही पुराने खेल| इस तरीके को आजमाएं जरूर, फिर देखिए आपकी व बच्चों की हंसी इस आनंद को दोगुना कर देगी।
बच्चों की तरह बात करें-
तुतलाती जुबान में अपनी मीठी बोली से सबका मन मोहते बच्चे कितने प्यारे लगते हैं न कामकाज में व्यस्त होने के कारण हम अपने बच्चों के इन सुनहरे लम्हों को इंजॉय भी नहीं कर पाते। इसलिए कभी-कभी बन जाए|
बच्चों के साथ बच्चे, उनसे उनकी भाषा में बात करें, कभी तुतलाकर तो कभी खिलखिलाकर। यदि आपके बच्चे बड़े हैं तो उन्हें बताएं वे बचपन में कैसे बात किया करते थे। ताकि उनकी याद भी ताजा हो जाए।
Shilpa Kumari Jain
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