ईसा की 7वीं शताब्दी में जब खलीफाओं का आक्रमण बढ़ गया, तब अधिकतर को इस्लाम अपनाना पड़ा और जो नहीं चाहते थे अपनाना उन्हें अपने ही देश को छोड़कर दूसरे देशों में शरण लेना पड़ी..!
यहां का मूल धर्म तो वैदिक धर्म ही था लेकिन जरथुस्त्र में वेदों पर आधारित पारसी धर्म की शुरुआत हुई। प्राचीन काल में आर्यों का एक समूह ईरान में ही रहता था। ईरान में वेदकालीन धर्म और संस्कृति का गहरा प्रभाव था।
जरथुस्त्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालीन माना जाता है। वे ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे। इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे। यह लगभग वही काल था, जबकि राजा सुदास का आर्यावर्त में शासन था और दूसरी ओर हजरत इब्राहिम अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।
पारसियों का धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है, जो ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। यही कारण है कि ऋग्वेद और अवेस्ता में बहुत से शब्दों की समानता है। अत्यंत प्राचीन युग के पारसियों और वैदिक आर्यों की प्रार्थना, उपासना और कर्मकांड में कोई भेद नजर नहीं आता।
वे अग्नि, सूर्य, वायु आदि प्रकृति तत्वों की उपासना और अग्निहोत्र कर्म करते थे। मिथ्र (मित्र सूर्य), वयु (वायु), होम (सोम), अरमइति (अमति), अद्दमन् (अर्यमन), नइर्य-संह (नराशंस) आदि उनके भी देवता थे। वे भी बड़े-बड़े यश्न (यज्ञ) करते, सोमपान करते और अथर्वन् (अथर्वन्) नामक याजक (ब्राह्मण) काठ से काठ रगड़कर अग्नि उत्पन्न करते थे।
उनकी भाषा भी उसी एक मूल आर्य भाषा से उत्पन्न थी जिससे वैदिक और लौकिक संस्कृत निकली है। अवेस्ता में भारतीय प्रदेशों और नदियों के नाम भी हैं, जैसे हफ्तहिन्दु (सप्तसिन्धु), हरव्वेती (सरस्वती), हरयू (सरयू), पंजाब इत्यादि।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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