Published By:धर्म पुराण डेस्क

औषधि सेवन से भी अधिक महत्व पथ्य-अपथ्य के पालन को देना चाहिए क्योंकि बदपरहेजी रोग का बल बढ़ाती है और औषधि का प्रभाव न करती है। यहां कुछ रोगों के रोगियों के लिए हितकारी पश्य का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
एक बात ध्यान में रखें कि पथ्य पदार्थों का सेवन न करना भी अपथ्यकारी सिद्ध होता है अतः पथ्य पदार्थों का सेवन करना ही चाहिए। कुछ रोगों के रोगियों के लिए उपयोगी पथ्य-पदार्थों का विवरण इस प्रकार है-
अरुचि अदरक, बिजौरा, अनार या नींबू में से किसी एक या दो या चारों का रस मिला कर पीना चाहिए।
भस्मक भोजन करने के थोड़ी ही देर बाद फिर से भूख लगने लगती है, इसे भस्मक रोग कहते हैं। इस रोग के रोगी को केले का गूदा 50 ग्राम और 1 चम्मच शुद्ध घी दिन में दो बार सुबह शाम खाना चाहिए। अग्निमान्द्य मन्दाग्नि वाला व्यक्ति कुनकुने गर्म पानी का सेवन करे और पान खाकर पहली दो पीक थूक कर बाद में पीक निगलता रहे।
खूनी बवासीर माखन-मिश्री, नागकेसर, शुद्ध घी, शक्कर, आंवला चूर्ण या आंवले का मुरब्बा। बादी बवासीर हो तो शुद्ध घी व त्रिफला चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिए।
खांसी यदि कफ युक्त खांसी हो तो अदरक का रस और शहद समान मात्रा में, पका पान, तुलसी के पत्तों का रस व मिश्री का थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सेवन करना चाहिए। खांसी सूखी हो, कफ बड़ी मुश्किल से निकलता हो तो मुलेठी का काढ़ा या अडूसे का रस शहद मिला कर लेना चाहिए। खटाई बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए।
पथ्य की मात्रा किसी पथ्य पदार्थ को अति मात्रा में सेवन करना उसे 'अपथ्य' बना देता है अतः आहार हो या औषधि, उचित मात्रा दोनों के लिए जरूरी होती है। उचित मात्रा भी पथ्य है।
किसी पथ्य-पदार्थ को भी अपनी रुचि के अनुकूल मात्रा में ही खाना चाहिए। रुचि के विपरीत खाना हानिकारक होता है। गरम पानी, ठण्डा पानी, चावलों का धोवन और दूध की मात्रा 50 से 80 मिलि., मीठे अनार का रस 20 मिलि., मिश्री, माखन, आंवले का रस, मुख्या, गुलकन्द (एक वर्ष पुराना), गुड़ (1 से 3 वर्ष पुराना), काराज़ी नींबू का रस, पोदीने का रस, प्याज का रस-इनमें से कोई भी पदार्थ एक वक़्त में 10 ग्राम वजन में लेना चाहिए। शहद 1 या 2 चम्मच लेना चाहिए। घी ताजा और शहद पुराना गुणकारी होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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