हमारे देश में सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह हुआ, कि यहाँ महापुरुषों और ग्रंथों के संदेशों को समझने में भूल हो गयी. इन्हीं बातों में “शांति” शामिल है. जिससे बात करो, वह यही कहेगा, कि मन की शांति सबसे बड़ी चीज़ है. हर व्यक्ति शांति की बात कर रहा है, उसके लिए बहुत तरह के उपाय कर रहा है, लेकिन जितने प्रयास करता है, उतना ही अशांत होता जा रहा है. वह साधु-संतों के पास जाते हैं, हिल स्टेशनों पर जाते हैं, ग्रंथ पढ़ते हैं, मंत्र जपते हैं, ध्यान करते हैं, मंदिरों और तीर्थस्थलों पर जाते हैं, लेकिन देर तक स्थिर रहने वाली शांति नहीं मिलती. इसका थोडा-बहुत अहसास भले ही हो जाता हो, लेकिन यह अवस्था बहुत देर नहीं टिकती. इसका कारण यह है, कि हम बिना क्रांति के शांति चाहते हैं. मन में हज़ारों संस्कार पड़े हुए हैं. हमारे मन में ईश्वर ने जो चिप लगा दी है, उसमें हर पल नए-नए संस्कार अंकित होते जा रहे हैं. हम जो भी पूजा-पाठ या अनुष्ठान करते हैं, उनसे बुद्धि और मन थोड़ी देर के लिए प्रभावित हो जाते हैं, लेकिन हमारे संस्काराशय पर इससे कोई चोट नहीं पड़ती. इसके लिए जीवन में ऎसी क्रांति की आवश्यकता होती है,जिससे हमारा पुराना चित्त पूरी तरह से समाप्त होकर एक ऐसे नए चित्त का निर्माण हो सके, जो हमे शांति के मार्ग पर बढ़ने में सहायक हो.
यह क्रांति होने को जन्म-जन्म तक नहीं हो और होने को एक क्षण में घटित हो जाए. जिन लोगों ने जीवन को गहराई से जाना है, उन सभी का कहना है कि जीवन एक रहस्य है. रहस्य भी ऐसा-वैसा नहीं, इसे समझना और सुलझाना असंभव है. विचार करके देखिये कि आख़िर उन्होंने ऐसा क्यों कहा? हम देख ही रहे हैं कि संसार का परिदृश्य और जीवन की स्थितियों में ज़रा में परिवर्तन हो जाता है. हम एक परिदृश्य को ठीक से देख भी नहीं पाते और दूसरा उपस्थित हो जाता है. जीवन तो इतना अनिश्चित है, कि इसमें क्षण भर में हालात एकदम विपरीत मोड़ ले लेते हैं. आपका कोई परम मित्र, क्षण भर में आपका घोर शत्रु बन सकता है; कोई आप पर जान छिड़कने और जन्म-जन्म तक साथ निभाने का वादा करने वाला, आपसे क्षण भर में इतनी नफरत करने लग सकता है कि आपकी सूरत देखना तो दूर, आपका नाम तक सुनना पसंद नहीं करे; कोई व्यक्ति क्षण भर में अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर पहुँच जाता है; सिकंदर जैसा विश्वविजेता मामूली बुखार से मर जाता है, तो कोई बहुत गरीब घर का लड़का सम्राट चन्द्रगुप्त बन जाता है. महान मुक्केबाज केसियस क्ले, यानी मोहम्मद अली का दावा था, कि वह अपने मुक्कों से दुनिया की सबसे मजबूत मानी जाने वाली एम्पायर स्टेट बिल्डिंग को तोड़ सकते हैं. लेकिन ऐसा भी दिन आया कि जब उनसे ओलम्पिक की मशाल जलाने को कहा गया तो उनके हाथ इतने कमज़ोर हो चुके थे, कि बुरी तरह कांपने लगे और वह मशाल नहीं जला पाए. हम आये दिन उत्सव को मातम में और मातम को उत्सव में बदलते देखते हैं.
इसी तरह चलते-चलते को कुछ लोगों के जीवन में कभी क्रांति घटित हो जाती है.. इसके अनेक उदाहरण पढने-देखने को मिलते हैं. चिन्मय मिशन के संस्थापक स्वामी चिन्मयानंद एक तेज-तर्रार पत्रकार और बहुत बड़े बुद्धिजीवी थे. सिगरेट उनकी एक तरह से छठी अंगुली थी. अचानक उनके सबसे घनिष्ट मित्र की मौत हो गयी. उसकी मौत का उन्हें गहरा सदमा पहुँचा. वह हरिद्वार में उसकी अस्थियों का विसर्जन करने गये. उन्होंने जैसे ही अस्थियों से भरा कलश खोला, कि पल भर में उनके भीतर ऐसा कुछ घटा, कि उन्हें परम वैराग्य हो गया. उन्होंने लौटकर संन्यास ले लिया. वह स्वामी चिन्मयानंद हो गये. वह इस सदी के सबसे प्रज्ञावान सन्यासियों में गिने जाते हैं. भारत की भक्ति-परम्परा में बंगाल के नवद्वीप के चैतन्य महाप्रभु का नाम अग्रणी है. वह अपने शिष्यों और भक्तों के साथ बीच सड़क पर श्रीकृष्ण की नाम का कीर्तन करते हुए नाचते गाते हुए चलते थे. बहुत लोग नहीं जानते होंगे कि वह पहले इतने बड़े तर्कवादी और बौद्धिक व्यक्ति थे, कि उनसे देशभर के विद्वान तर्क करने में घबराते थे. उनकी बुद्धि इतनी अधिक विकसित थी कि लोगों को उनकी विद्वद्ता पर आश्चर्य होता था. फिर क्षण भर में ही न जाने क्या हुआ, कि उन्होंने सारी बौद्धिकता छोड़कर भगवान के नाम कीर्तन का सहारा ले लिया. उन्होंने नाचते-गाते-कीर्तन करते हुए हज़ारों लोगों को ईश्वर भक्ति के मार्ग पर अग्रसर किया. वह स्वयं भी भक्ति की परम अवस्था को प्राप्त कर ईश्वर में लीन हो गये.
स्वामी विवेकानंद कोई कम विद्वान और तार्किक नहीं थे. वह तो जिस भी संत या योगी से मिलते थे, तो एक ही बात पूछते थे, कि क्या आपने ईश्वर को देखा है? यदि देखा है, तो क्या आप मुझे भी दिखा सकते हैं? हर कोई निरुत्तर हो जाता है. एक बार कोलकाता से कुछ किलोमीटर दूर दक्षिणेश्वर में स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास जा पहुँचे. उनसे भी यही प्रश्न किया. वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि, “हाँ, मैंने ईश्वर को देखा है और तुम्हें भी दिखा सकता हूँ”. परमहंस ने उनकी छाती पर पांव रख दिया. पल भर में उन्हें इतनी गहरी आत्मानुभूति हुयी कि वह नरेंद्र से विश्वप्रसिद्ध स्वामी विवेकानंद बन गये. अनेक ऐसे लोग हुए, जिन्होंने किसी चीज को समझने या पाने के लिए पूरा जीवन लगा दिया, लेकिन कुछ नहीं मिला. लेकिन किसी दिन, किसी क्षण अचानक उन्हें वह चीज मिल गयी या वह ज्ञान हो गया जिसकी उन्हें तलाश थी. यूरेका मोमेन्ट की कहानी तो बहुत से लोग जानते ही होंगे. यूनान के महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक आर्कमिडीज को राजा ने यह पता लगाने के लिए कहा, कि उसके लिए जो नया मुकुट बनाया गया है, वह शुद्ध सोने का है या सुनार ने उसमें कुछ मिलावट की है. मुकुट को नुकसान किये बिना इस समस्या का हल कर करना था. एक दिन जब वह नहाने के लिए टब में उतरे, तो उन्होंने देखा, कि पानी का स्तर उठ गया है. उन्होंने महसूस किया, कि इस प्रभाव का उपयोग मुकुट का आयतन ज्ञात करने के लिए किया जा सकता है. यदि इसमें कोई और धातु मिलाई गयी होगी तो इसका घनत्व सोने से कम होगा. कहते हैं कि इस खोज पर वह इतना उत्तेजित हो गया, कि बिना कपड़े पहने ही टब से बाहर निकल कर नग्न ही शहर की गलियों में चिल्लाने लगा ‘यूरेका’. यूनानी भाषा में इसका अर्थ होता है कि “मैंने इसे पा लिया.
इसी तरह इंसान को जो भी बहुमूल्य मिला है, वह अचानक क्षण भर में ही मिला है. अनेक लोगों को इलहाम हुआ है और होता है. यानी अचानक कोई ज्ञान प्राप्त हो जाता है. शायर को पता नहीं होता, कि उसके दिमाग में शे’र कहाँ से नाज़िल होते हैं. महान शायर ज़िगर मुरादाबादी बहुत शराब पीने के लिए बदनाम थे. लेकिन उन्होंने कहा, कि जब उन पर शे’र नाज़िल होते हैं, तो महीनों शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. क्रोंच पक्षी की पीड़ा देखकर महर्षि वाल्मीकि के मुख से अचानक श्लोक फूट पड़ा. वह संस्कृत काव्य का पहला छंद था. इसीमें उन्होंने रामायण की रचना की. वास्तविक कवियों को बिल्कुल पता नहीं होता, कि उनके भीतर कविता कहाँ से आ रही है. वे विचार कर नहीं लिखते. संत तुलसीदास ने कहा है, कि ‘रामचरितमानस’ की रचना उन्होंने कैसे की यह स्वयं उन्हें पता नहीं है. ऋषियों को मंत्रदृष्टा कहा गया है. मंत्र उनके ह्रदय में प्रकाशित होते थे. इसी तरह साहित्य की महान रचनाएँ स्वयं उनके रचनाकारों के लिए भी आश्चर्य का विषय रही हैं. कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकलता है कि जीवन में कुछ भी घटने या बदलने में ज़रा सी देर लगती है. इसीलिए किसी भी सुख-दुःख या किसी अन्य स्थिति को स्थायी मानकर उसमें विचलित नहीं होने की सीख दी गयी है. सब कुछ परिवर्तनशील है. किसीने कहा है, कि सिर्फ एक चीज अपरिवर्तनशील है, वह है परिवर्तन. आज जिनके जीवन में सुख ही सुख है, उन्हें अभिमान नहीं करना चाहिए. जिनके जीवन में दुःख ही दुःख है, उन्हें निराश नहीं होना चाहिए. इससे वर्तमान पल में जीने की सीख मिलती है. याद रखिये.. ज़रा सी देर लगती है. बस अपना काम करते रहकर धीरज के साथ उस पल का इंतज़ार कीजिए, जब जीवन में क्रांति घटित होकर परम शांति आ जाए. बिना इस क्रांति के शांति संभव नहीं है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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