Published By:धर्म पुराण डेस्क

पितृपक्ष: जानिए मातृ नवमी का महत्व, पूजन विधि और श्राद्ध का तरीका 

पितृपक्ष में पड़ने वाली नवमी तिथि को मातृ नवमी का श्राद्ध किया जाता है। इस बार ये तिथि 19 सितंबर यानि कि आज है। इस तिथि को मातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है। मातृ नवमी के दिन दिवंगत माताओं, बेटियों और सुहागिन स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन घर की पुत्रवधुओं को उपवास रखना चाहिए, इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। मातृनवमी का श्राद्ध और तर्पण करने से दिवंगत माताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में धन-संपत्ति और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।

पितृपक्ष के पंद्रह दिनों में पूर्वजों को याद किया जाता है इसलिए इस समय को पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि श्राद्ध तिथि के दिन पितरों को याद करते हुए दान पुण्य करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को तृप्ति मिलती है। जिस तिथि को हमारे पितृ देह त्याग करते हैं उसी तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। लेकिन दिवंगत माताओं, बहुओं और बेटियों का श्राद्ध केवल नवमी तिथि के दिन ही किया जाता है चाहे उनका निधन किसी भी तिथि को क्यों न हुआ हो। इस दिन श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

मातृ नवमी का महत्व

वैसे तो पितृपक्ष में पड़ने वाली हर तिथि का अपना महत्व है लेकिन मातृ नवमी का अपना विशेष महत्व है इसलिए इस तिथि को सौभाग्यवती श्राद्ध तिथि भी कहा जाता है। इस दिन दिवंगत माताओं को याद करते हुए श्राद्ध करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और घर में सुख-शांति का वास रहता है। दिवंगत माताओं, बेटियों और बहुओं का श्राद्ध करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और हर कष्ट दूर होता है। मान्यता है कि इस दिन घर की महिलाएं पूजा-पाठ और व्रत करती हैं, तो उनको सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

मातृ नवमी के दिन करें ये उपाय
 
मातृ नवमी के दिन दिवंगत माताओं को याद करते हुए एक बड़ा दीपक आटे का बनाकर जलाएं। मातृ नवमी के दिन पितरों की तस्वीर पर तुलसी की पत्तियां अर्पित करनी चाहिए और श्राद्ध कर्ता को भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करना चाहिए।

पितृ पक्ष की नवमी तिथि के दिन ब्राह्मण महिलाओं भोजन करवाना चाहिए और उनको सुहाग का सामान भी देना चाहिए ताकि मातृ शक्तियों की कृपा बनी रहे।
इस दिन गाय, चींटी, चिड़िया, कौआ और ब्राह्मणों के लिए भोजन निकाला जाता है। इसके बाद ही नवमी का श्राद्ध किया जाता है। मातृ नवमी के दिन श्रीमद् भागवत कथा के साथ गरुण पुराण का भी पाठ करना चाहिए।

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