उज्जैन देश के प्राचीन नगरों में से एक है। भगवान महाकाल की इस नगरी को अतीत में उज्जयिनी, अवंति और अवंतिका आदि नामों से संबोधित किया जाता रहा है।
उज्जैन का उल्लेख महाकवि कालिदास की कृति मेघदूत में भी मिलता है। जनश्रुति है कि पार्वती के कहने पर शिवजी ने इस विशाल नगरी को बसाया था, इसलिए यह नगरी विशाला भी कहलायी। गरुड़ पुराण के मतानुसार पृथ्वी पर स्थित सात पुरियों में उज्जयिनी सर्वश्रेष्ठ है।
वामनपुराण में विवरण मिलता है कि प्रहलाद ने शिप्रा नदी में स्नान करने के पश्चात् महाकालेश्वर के दर्शन किए थे। उज्जैन में वर्ष में 31 लाख 2 सौ 81 पर्यटक आए, इनमें 30 लाख 99 हजार 3 सौ 79 भारतीय और 902 विदेशी थे।
उज्जैन का सिंहस्थ: भारतीय परम्परा में स्नान का अपना अलग ही महत्व है। विभिन्न त्योहारों, उत्सवों पर नदियों, सरोवरों में स्नान करना धार्मिक दृष्टि से उपयुक्त माना जाता है। पर्व स्नान में सबसे ज्यादा महत्व कुंभ स्नान का माना गया है। यहां हर 12 वर्ष बाद कुंभ का आयोजन होता है, जिसमें करोड़ों तीर्थ यात्री आते हैं।
उज्जैन के साथ ही कुंभ का पर्व हरिद्वार, इलाहाबाद और नासिक में भी आयोजित होता है। कुंभ पर्व आयोजित होने के पीछे पौराणिक कहानी जुड़ी हुई है। उसके अनुसार जब देवताओं और दानवों ने संयुक्त रूप से फल प्राप्ति के लिये क्षीरसागर का मंथन किया तब उसमें से 14 रत्न प्राप्त हुए। इसमें महत्वपूर्ण अमृत को देख देवताओं ने सोचा कि यदि यह दानवों को मिल गया तो वे अमर हो जाएंगे। उनकी पराजय कभी संभव नहीं होगी।
इसी सोच को दृष्टिगत रखते हुए देवताओं के राजा इन्द्र ने अपने पुत्र जयंत को अमृत कुंभ लेकर देवलोक भाग जाने को कहा। दानव, देवताओं की चाल समझ पाते उससे पहले ही जयंत अमृत कुंभ लेकर भागे। जयंत को अमृत कुंभ ले जाते देख दानवों ने उनका पीछा किया।
अमृत कुंभ को लेकर देवताओं और दानवों में जोर आजमाइश हुई। इसी जोर-आजमाइश में कुंभ से छलक कर अमृत की बूंदें हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक में जमीन पर गिरी। अमृत कुंभ से अमृत गिरने के कारण ही चारों स्थानों पर कुंभ पर्व भरता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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