 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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एक बार एक राजा अपने मंत्रियों के साथ समुद्र की यात्रा पर निकला. नीले समुद्र पर उसका शाही जहाज राजहंस की तरह तैर रहा था. हवा धीरे-धीरे बह रही थी और आसमान भी नीला था. राजा और मंत्री यात्रा का पूरा आनंद ले रहे थे.
लेकिन, एक मंत्री पहाड़ी इलाके का था. उसने कभी समुद्र नहीं देखा था, उसे जहाज के हिचकोले डरावने लगे. समुद्र का अथाह एवं असीम जल देख कर उसका दिल बैठने लगा. उसकी तबीयत बिगड़ गई. उसके पेट में मरोड़ें उठने लगीं. चक्कर आने लगे और उल्टियां होने लगीं. दवाओं का उस पर कोई असर नहीं हुआ, तभी एक बूढ़े जहाजी ने कहा- "अगर राजा इजाजत दें तो मैं इसका इलाज कर सकता हूं.” राजा ने इजाजत दे दी. बूढ़े ने चार तगड़े तैराकों को बुला कर उनके कानों में कुछ कहा. उन्होंने उस मंत्री को उठा कर समुद्र में फेंक दिया. राजा और अन्य मंत्री भौंचक रह गये. बूढ़े ने उन्हें 'सब' ठीक होने का इशारा किया.
उधर समुद्र के पानी में मंत्री गोते खा रहा था. उसके नाक-कान और आंखों में खारा पानी घुस गया. जब वह बहुत सारा पानी पी चुका तो बूढ़े ने उन तैराकों को इशारा किया. चारों तगड़े तैराक पानी में कूदे और मंत्री को पानी से निकाल कर जहाज पर ले आये, उसके पेट से पानी निकाल दिया गया, वह बुरी तरह खांस रहा या, उसकी आंखें जल रही थीं, लेकिन अब न तो उसे मितली आ रही थी और न ही उसके पेट में मरोड़ें उठ रही थी.
राजा के पूछने पर बूढ़े जहाजी ने कहा- “जो एक बार समुद्र को जान लेता है उसे अपने पैरों तले मजबूत कश्ती के सुख का पता चलता है. इनकी बीमारी का यही सही इलाज था." कुछ देर बाद उस मंत्री को भी उस यात्रा में मजा आने लगा.
 
 
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