Published By:धर्म पुराण डेस्क

बहुविवाह दोष और परिहार के उपाय..

जातक के जन्म के समय में गुरु, शुक्र, मंगल, चन्द्र, बुध, केतु, शनि, राहु, सभी ग्रह दोहरे जीवन साथी के लिये तभी उत्पन्न करते है जब यह ग्रह एक या अधिक संख्या में दोहरे स्वभाव वाले भाव में उपस्थित होते है, भाव के बाद राशिया भी अपनी युति को प्रदर्शित करती है और ग्रह भी गोचर से अपने प्रभाव को प्रदर्शित करते है। 

मेष लग्न में सप्तम स्थान में दोहरे स्वभाव की राशि तुला होती है, साथ ही कुटुंब भाव में भी दोहरे स्वभाव की राशि वृष होती है, इन राशियों मे किसी भी ग्रह का उपस्थित होना दोहरे सम्बन्धो के लिये अपने प्रभाव को देना शुरू कर देगा। 

लग्नेश मंगल इन राशियों अपना स्थान बनाता है तो भी और शुक्र अपना स्थान बनाता है तो भी दोहरे सम्बन्ध माने जायेंगे। विवाह होने के लिये एक साथ कई कारण पैदा होते है, जैसे बुध बातचीत मे आता है गुरु सम्बन्ध की छाप देता है और शुक्र काम क्रिया का कारक है, इसी प्रकार से मंगल उत्तेजना देता है शनि उत्तेजना को ठंडा करने के लिये अपनी शक्ति को देता है लेकिन राहु उत्तेजना को बढाने का काम करता है। 

कर्क वृश्चिक मीन का राहु अपने संबंधों को भुलाकर भी सम्बन्ध बनाने के लिये अपनी धारणा को देता है जैसे कुल संबंधों के लिये भी यही बात देखी जाती है साथ ही एक ही परिवार मे भाई बहिन जैसे रिश्ते भी कभी कभी राहु की शक्ति के कारण अनदेखे किये जाते है और प्रणय सम्बन्ध बनाकर उन्हें भी कलुषित कर दिया जाता है। 

गुप्त संबंधों का बनना और गुप्त संबंधों को क्रिया में शुरू होना दो भावों के स्वामियों पर निर्भर करता है। इसके लिये छठे और आठवें भाव के साथ उनके मालिकों के चक्कर मे जब लग्नेश आ जाते है और अलग अलग भावों के मालिक लग्नेश के साथ आमने सामने की युति को बनाने लगते है तो सम्बन्ध गुप्त रूप से बन भी जाते है और उनका क्रिया में होना भी मान लिया जाता है। 

पंचमेश और लग्नेश का साथ होना या पंचमेश और लग्नेश का आमने सामने होना, राहु मंगल या गुरु अथवा शुक्र का साथ देना गुरु शिष्य के नाते को भी खत्म कर देता है। षष्ठेश लग्नेश और पंचमेश की युति या आमना सामना माता की बहन यानी मौसी जैसे नापाक रिश्ते को गुप्त रिश्ते के कारण बंद कर देता है। 

लग्नेश का अष्टम में होना और केतु का साथ होना भी सभी रिश्तों को ताक में रखकर कामुकता की शांति के लिए रिश्ता बना लिया जाता है। इन कारणो से बचने के लिये ही अलग अलग समाजो ने अपने अपने नियम बनाकर दूरिया बनाने और रिश्तों को पाक साफ़ रखने की बात की है।

उड़ीसा में कई समुदाय रिश्तों को अपने समुदाय के अन्दर ही करते है जबकि यूपी और बिहार आदि के साथ राजस्थान में हरियाणा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र में समुदाय के रिश्ते से दूर का रिश्ता देखा जाता है यानी गोत्र भी बचाये जाते है और दादी नानी आदि के गोत्र से दूर रहा जाता है। 

जबकि कई जातियों में रिश्ता किया जा सकता है तो केवल माता के भाई के लडके के साथ या माता के भाई की लडकी के साथ इस प्रकार से प्राकृतिक रूप से ममेरी और फ़ुफ़ेरी बहिन का रिश्ता भी समाप्त हो जाता है और उन लोगो के कहने का अर्थ यह भी होता है कि खून के रिश्तेदार अपनत्व लेकर चलते है| 

जबकि बाहरी लोग समाज व्यवस्था पारिवारिक व्यवस्था खानपान को साथ लेकर नही चल पाते है और अक्सर विवाह टूटते हुये देखे जा सकते है। राहु से संबंधित जातियां भी रिश्तों के प्रति अधिक दूरिया नही देखती है यही हाल केतु से सम्बन्धित मानवीय समुदाय में देखा जा सकता है। 

जबकि मंगल से सम्बन्धित रिश्तेदारों में आपसी रिश्तों को और खून के रिश्तेदारों को देखा जाता है जबकि बुध से संबंधित समुदायो में धन और सामाजिक बल के बडे हुये रूप को देखकर रिश्ते किये जाते है। गुरु से संबंधित समुदायों गोत्र और कई बातो का परिहार किया जाता है जबकि शुक्र से सम्बन्धित समुदायों जाति पांति धर्म आदि को नही देखा जाता है। 

शनि वाले समुदायों में भी गोत्र आदि का बहुत ध्यान रखा जाता है और किसी प्रकार से कोई उच्च जाति का जीवन साथी किसी कारण से आ भी जाता है तो उसे शादी का बुखार उतरते ही सत्यता में जाते ही अपने रिश्ते को समाप्त भी करना पड़ जाता है या वह दूर जाकर अपनी वैवाहिक जीवन को जीने के लिये मजबूर हो जाता है।

जन्म समय के गुरु का प्रभाव अगर किसी खराब ग्रह से कलुषित हो रहा है तो भी नाजायज संबंध बन जाते है और जन्म समय के गुरु का असर किसी गलत ग्रह पर पड रहा है तो नाजायज रिश्ता भी जायज बनाकर समाज में ग्रहण कर लिया जाता है|

कहने का मतलब यह है कि गुरु अगर जन्म समय में ठीक है और अपने प्रकार को सही दिशा मे प्रदर्शित कर रहा है तो जातक का जीवन सही रिश्तों की तरफ़ जायेगा और सम्बन्धो के मामले में दिक्कत नही आयेगी| मगर गुरु का प्रभाव अगर गलत है तो जातक अपने जीवन मे जब भी गुरु किसी भी ग्रह के साथ गोचर करेगा उसका खराब ग्रह से दूषित भाव सम्बन्धो के प्रति गलत प्रभाव ही देगा।

चन्द्रमा जब अष्टमेश, षष्ठेश, सप्तमेश, द्वितीयेश से सम्बन्ध कर रहा हो उस समय राहु केतु या मंगल भी साथ दे रहे हो तो मानसिकता को साफ़ रखने के लिये युति वाले ग्रह के साकार कामो को करने लग जाना चाहिये। काम करना और काम में रत होना दोनों अलग अलग है काम को कार्य भी कहते है और काम को यौन सुख के लिये भी देखा जाता है.

यौन सुख की लालसा के समय में कार्य को करने लग जाना चाहिये इस प्रकार से यौन सुख की लालसा कार्य रूप में फ़लदायी हो जायेगी जबकि यौन सुख में जाने से शरीर को भी बरबाद करेगी और शक्ति की कमी तथा बदनामी को भी प्रदान करेगी. 

यात्रा करना और जल विहार करना, बागवानी में मन को लगा लेना, केमिकल के काम करने लग जाना, तकनीकी रूप से कार्य को करने लग जाना, विद्या के क्षेत्र में नयी नयी विद्या को ग्रहण करने लग जाना, खट्टी और उत्तेजक भोज्य पदार्थों पेय पदार्थों को त्याग देना चन्द्रमा की मानसिक दशा में लाभदायक हो जाते है|

गोमती चक्र इसके लिए एक अचूक उपाय है चांदी में बनवाकर कमर में धारण करने से कामोत्तेजना में शांति मिलती है दिमाग में चलते हुए गलत विचार शुद्ध होने लगते है। यह भी ध्यान रखना चाहिये कि केतु उस समय साधन देता है राहु उस साधन को प्रयोग करने का अवसर देता है राहु केतु के प्रभाव से भी बचने का कारण समझ कर चलना चाहिये.

शरीर में उत्तेजना तभी आती है जब स्त्रियों के शरीर में रज की मात्रा बढ़ती है और पुरुष के शरीर में वीर्य की मात्रा का बढ़ना होता है। अक्सर जो लोग पसीना बहाने का काम नही करते है अधिकतर बैठे रहते है और उनके लिये दिमागी काम करने का समय भी कम होता है उन लोगो के लिये रज और वीर्य को साधने का कार्य करना चाहिये| 

इसके लिये योग करना व्यायाम करना हाथ पैरों को चलाने का काम करना जिम जाना आदि भी ठीक रहता है इस प्रकार से रज और वीर्य बढ़ने के कारण पसीना आने से दूर होने लगते है। जब भी लगे कि मन भटक रहा है उस समय अपने धर्म और रीति नीति के अनुसार चलने लग जाना चाहिए, कारण को कारकत्व में बदलने का उपक्रम सोचना चाहिए।

राहु भीड का कारक भी होता है और शुक्र चमक दमक को देने वाला भी होता है, राहु शुक्र के साथ मिलकर शरीर में भयंकर उत्तेजना को भी प्रदान करता है और चमक दमक को देखकर वासना की उत्पत्ति भी करता है। मंगल के समय में यानी पच्चीस साल से लेकर पचास साल की उम्र तक इनका वेग बहुत अधिक होता है, लेकिन उम्र की तेरह साल की अवस्था से लेकर उन्नीस साल की अवस्था को केतु से जोड़कर देखा गया है| 

इस समय में दिमाग को घुमाने के लिये फ़ोटोग्राफ़ी कलात्कम कारणो का सृजन करना अपने नाम को आगे बढाने के लिये अपने शिक्षा सम्पत्ति को बढाने के उपक्रम करने से फ़ुर्सत में नही लाना चाहिये| 

इस प्रकार से यह योग फ़ायदा भी दे जायेंगे और मानसिक रूप से मन भी खराब नही होगा और शरीर की भी सुरक्षा बनी रहेगी। भीड भाड वाले क्षेत्र से दूर रहना चाहिए जहां सामूहिक भोजन और नाचगाना आदि होता है वहां से किनारा कर लेना चाहिये, जहां चमक दमक और पहनावे को विशेष महत्व दिया जाता है वहां जाने से बचना चाहिये आदि कारण उत्तेजित होने वाले कारको से दूर रखने में सहायक हो सकते है।

लेखक : रामेन्द्र सिंह भदौरिया


 

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