Published By:धर्म पुराण डेस्क

सकारात्मक रवैया

दृष्टि के आधार पर जीवन में अच्छा या बुरा तय होता है। ब्रह्मांड में सभी का एक ही अर्थ है। सबकी उपयोगिता भी समान है और समर्थन भी। सृष्टि में कुछ भी व्यर्थ नहीं है। हमारी अवधारणाएं, अनुभव और विचार निर्धारित करते हैं कि परिणाम अच्छा है या बुरा। जीवन में हमारे आध्यात्मिक विकास का क्रम भी अच्छे या बुरे के निर्धारण का कारक बनता है।

मनुष्य जानवरों को मार कर अपना गुजारा करते हैं। ये बुरी चीज है लेकिन व्यक्ति के पिछले कर्म, जानवरों के पिछले कर्म और उन्हें खाने वालों के कर्म सभी इसे निर्धारित करते हैं। इसकी खास बात यह है कि वे एक-दूसरे के ऋणों का आदान-प्रदान करते हैं।

यदि यह मान भी लिया जाए तो भी प्रश्न उठता है कि उसी दिशा में नए कर्मों का निर्माण किया जाए या अनजाने में उन्हीं कर्मों को करते रहें। और इसके बाद सकारात्मक दृष्टिकोण क्यों महत्वपूर्ण है, सकारात्मक दृष्टिकोण की भूमिका जीवन को कैसे बदलती है, नकारात्मकता से बचने की क्या आवश्यकता है आदि जैसे प्रश्न।

सत, रज और तम हमसे जुड़े हुए हैं। द्वैत दृष्टि जुड़ी है, कर्म बंधन जुड़ा है और भावी जीवन का लक्ष्य (मोक्ष) जुड़ा है। जब तक आप वर्तमान को नहीं समझेंगे, तब तक आप भविष्य को नहीं समझ सकते। 

यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि हमारा मन कहाँ अटकता है, भटकता है, चिपकता है, और कोशिश करें कि अनावश्यक जगहों से न चिपके।

इसका सरलतम उपाय है सकारात्मक दृष्टि। जीवन में जागरूकता और सकारात्मक दृष्टिकोण आपको हर काम में सार्थक भूमिका देगा। यह आपके आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन जाएगा। 

शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक स्तर पर सकारात्मकता की भावना आपको वास्तविक धरातल से जोड़ती है, और आपको नकारात्मक दृष्टिकोण से बचाती है। आपके जीवन के मामले सरल होंगे। आप सृजन कर्म से जुड़ेंगे, ऋण विनिमय की दृष्टि उत्पन्न होगी और आप अनावश्यक प्रतिक्रियाओं से बच सकेंगे।

सकारात्मक भावनाएं आपको एक निश्चित लक्ष्य की ओर ले जाएंगी। जैसे-जैसे आपकी ताकत बढ़ेगी, प्रकृति भी आपकी परीक्षा लेगी। प्रत्येक अगले स्तर तक आगे बढ़ने के लिए आपको कोई न कोई कठिन परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। 

तुम धनवान हो गए हो, तुम्हारे पास जीवन के सारे सुख है, क्या तुम उन्हें हजम कर पाते हो या सुख के चक्कर में तुम अपने लक्ष्य को भूल जाते हो, यही परीक्षा है। आपको कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें आपको खुद पर काबू पाना होगा, जो आप सकारात्मकता की मदद से ही कर सकते हैं। 

समय लगेगा, धैर्य की परीक्षा होगी, भटकाव का एहसास होगा। यदि आपका विश्वास दृढ़ है, तो आपमें निर्भयता की भावना विकसित होगी। आप एक महान व्यक्तित्व का विकास करेंगे, फिर उससे भी बड़ी परीक्षा होगी।

एक सकारात्मक दृष्टिकोण मूल रूप से भावनाओं पर आधारित होता है। बुद्धि भी उसी क्रम में काम करने लगती है। शरीर की अनावश्यक क्रियाएं भी रुक जाती हैं। गंभीरता और पवित्रता का अद्भुत मेल है। यह दृष्टि आगे चलकर अद्वैत की भूमिका की ओर ले जाती है।

एक साधु कहता है कि मैं चरस पीता हूं क्योंकि इससे मेरी एकाग्रता बढ़ती है, मैं स्वयं को शिव के सानिध्य में देख पाता हूं, यह मुझे शरीर की चुनौतियों का सामना करने का अवसर देता है। क्या शरीर मेरी एकाग्रता में बाधा डाल सकता है? वह कुछ सकारात्मक कहते नजर आ रहे हैं। 

सच तो यह है कि जो समर्थ होते हैं वही कृत्रिम नशा सबसे पहले छोड़ते हैं। उन्हें लगने लगता है कि शिव का अपना नशा ही इतना महान है कि उसके सामने और कोई नशा टिक नहीं सकता। शरीर का नशा उतर जाता है, बुद्धि अहंकार रहित सात्विक रूप धारण कर लेती है।


 

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