'दिव्य जीवन संघ' के संस्थापक श्री स्वामी शिवानंदजी महाराज मंत्रयोग के विषय में कहते हैं:
"मंत्र तथा उसके अधिष्ठाता देव एक ही हैं। मंत्र स्वयं देवता है। मंत्र दैवी शक्ति है जो शब्द शरीर से प्रकट होती है। श्रद्धा, भक्ति तथा शुद्धता के साथ मंत्र का सतत जप करने से साधक की शक्ति बढ़ती है, मंत्र चैतन्य का जागरण होता है तथा साधक को मंत्र सिद्धि मिलती है। उसे ज्ञान, मुक्ति, शांति, नित्य सुख तथा अमरत्व की प्राप्ति होती है।
मंत्रों में देवताओं की स्तुति अथवा करुणा या सहायता की याचना होती है। कुछ मंत्र बुरी आत्माओं को रोकते हैं या अनुशासित करते हैं। शब्दों के लयपूर्ण स्पन्दन से आकृतियों की उत्पत्ति होती है। मंत्रों के उच्चारण से उनके देवता विशेष की आकृतियाँ मन में उपजती हैं।
मंत्र का सतत जप करने से साधक मंत्र के अधिष्ठाता देवता के गुणों तथा शक्तियों को प्राप्त करता है। सूर्य मंत्र: ॐ सूर्याय नमः इस मंत्र के जप से स्वास्थ्य, दीर्घायु, वीर्य तथा तेज की प्राप्ति होती है। यह शरीर तथा चक्षु के सारे रोगों को दूर करता है। इसके जप से शत्रु कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकते ।
सरस्वतीमंत्र :
ॐ श्री सरस्वत्यै नमः इस मंत्र के जप से ज्ञान तथा प्रखर बुद्धि प्राप्त होती है।
लक्ष्मीमंत्र :
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः इस मंत्र के जप से संपत्ति प्राप्त होती है तथा निर्धनता का निवारण होता है।
गणेशमंत्र :
(1) ॐ श्री गणेशाय नमः (2) ॐ श्री महागणपतये नमः। (3) ॐ गं गणपतये नमः। इन मंत्रों के जप से किसी भी कार्य के संपादन में बाधा का निवारण होता है।
श्री हनुमानमंत्र :
ॐ श्री हनुमते नमः। इस मंत्र के जप से विजय तथा बल की प्राप्ति होती है।
सुब्रह्मण्यमंत्र :
ॐ श्री शरवणभवाय नमः। इस मंत्र के जप से कार्यों में सफलता मिलती है। यह मंत्र प्रेतात्माओं के कुप्रभाव को भी दूर करता है।
सगुण मंत्र :
(1) ॐ श्री रामाय नमः। (2) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। (3) ॐ नमः शिवाय। ये सगुण मंत्र है जो पहले सगुण साक्षात्कार प्रदान करते हैं, फिर अंत में निर्गुण साक्षात्कार।
मोक्षमंत्र :
(1) ॐ (2) सोऽहम् (3) शिवोऽहम् (4) अहं ब्रह्मास्मि। ये मोक्षमंत्र हैं। ये आपको आत्म-साक्षात्कार में सहायता प्रदान करेंगे।
महामृत्युंजय मंत्र :
ॐ हौं जूं सः। ॐ भूर्भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं हौं ॐ।
आकस्मिक दुर्घटना, सर्पदंश तथा असाध्य बीमारियों आदि को दूर कर दीर्घायु तथा अमृतत्व प्रदान करता है। यह मोक्षमंत्र भी है।
स्वास्थ्य हेतु :
सिर के ऊपर हाथ रखकर 108 बार निम्नांकित मंत्र का जप करने से समस्त रोग दूर हो जाते हैं :
अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारणभेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥
'हे अच्युत ! हे अनंत ! हे गोविन्द ! - इन नामों के उच्चारण रूपी औषधि से सब रोग नष्ट हो जाते हैं। मैं यह सत्य कहता हूँ... सत्य कहता हूँ ।'
(धन्वंतरि)
सफलता हेतु मंत्र :
कृष्ण कृष्ण महायोगिन् भक्तानाम भयंकर|
गोविन्द परमानन्द सर्व मे वशमानय॥
'हे कृष्ण ! हे कृष्ण ! हे महायोगी ! हे भक्तों को अभय प्रदान करने वाले ! हे गोविन्द ! हे परमानंदस्वरूप ! आप सब कुछ मेरे अनुकूल बनाइये।'
संपत्ति के लिए :
आयुर्वेहि धनं देहि विद्यां देहि महेश्वरि।
समस्तमखिलां देहि देहि मे परमेश्वरि॥
'हे शिवप्रिया महेश्वरी ! मुझे दीर्घायु दीजिए मुझे संपत्ति दीजिए। मुझे विद्या दीजिए। हे परमेश्वरी ! मुझे अन्य सभी वांछित पदार्थ दीजिये।'
भूत-प्रेत भगाने का मंत्र :
ॐ नमो भगवते रुरु भैरवाय भूत प्रेत
क्षय कुरु कुरु हुं फट् स्वाहा।
विधि :
एक कटोरी में भरे हुए शुद्ध जल को निहारते हुए इस मंत्र का दस हजार (100 मालाएँ) जप करें। फिर वह जल भूत-प्रेतादि से प्रभावित व्यक्ति को पिला दें। इससे वे भूत प्रेत उस व्यक्ति को छोड़कर भाग जायेंगे। एक ही स्थान में बैठकर, एक ही समय में मंत्रजप करने से अधिक लाभ होगा।
बिच्छू के डंक तथा सर्पदंश के निवारक मंत्रों को चंद्र ग्रहण अथवा सूर्यग्रहण के समय जपने से शीघ्र सिद्धि मिलती है।
दूसरों के विनाशकार्य में मंत्र सिद्धि का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। जो लोग मंत्र सिद्धि का दुरुपयोग करते हैं, वे अंततः स्वयं विनष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार, स्वार्थ के लिए जो लोग अपनी सिद्धि का उपयोग करते हैं, उनकी सिद्धि चली जाती है, किन्तु पूर्णतया निःस्वार्थ भाव से, सर्वात्मभाव से, मानवता की सेवा करने वालों की शक्ति ईश्वर कृपा से बढ़ जाती है।
यह तो हुई बात कुछ मंत्र तथा उनके द्वारा मिलने वाले लाभ की किन्तु एक मंत्र ऐसा भी है जिसका जप हर समय होता ही रहता है। हंस उपनिषद् में आता है :
हकारेण बहिर्याति सकारेण विशेत पुनः।
हंस हंस इत्ययं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा॥
'श्वासोच्छ्वास के समय 'ह' कार शब्द से श्वास बाहर आता है व 'स' कार शब्द से श्वास भीतर जाता है। इस प्रकार जीवमात्र सर्वकाल में 'हंस... हंसः...' इस मंत्र का जप करता रहता है।'
सभी प्राणी प्राकृतिक रूप से 'सोऽहं' मंत्र का जप कर रहे हैं। इस अजपाजप में वृत्ति को जोड़कर साधक को उसके अर्थ का चिंतन करना चाहिए कि : 'सोऽहं... मैं वही हूँ... मैं साक्षी हूँ... मैं सच्चिदानंद स्वरूप ब्रह्म हूँ... सोऽहम्।'
इस अजपा गायत्री को पहचान लोगे तो फिर मन के विकार, चिंता, घृणा, भय आदि दूर होने लगेंगे तथा संसार के सब व्यवहार निभाते हुए भी आप राजा जनक की नाई मुक्ति का अनुभव कर सकोगे।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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