 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जीवन में शक्ति हासिल करना हर इंसान की ख्वाहिश होती है लेकिन शक्ति प्राप्त करने के लिए धैर्य और संयम के साथ शक्ति का संचय करना पड़ता है।
संचित शक्ति ही शक्ति को आकर्षित करती है और संचित शक्ति ब्रह्म शक्ति के साथ मिलकर महाशक्ति में तब्दील हो जाती है।
एक घटना के अनुसार स्वामी दयानंद ने दो सांड़ों को आपस में लड़ते देखा। वे हटाए नहीं हट रहे थे। स्वामी जी ने दोनों के सींगों को दोनों हाथों से पकड़ा और मरोड़ कर दो दिशाओं में फेंक दिया। डरकर वे दोनों भाग खड़े हुए।
ऐसी ही एक घटना और है। स्वामी दयानंद शाहपुरा में निवास कर रहे थे। जहां वे ठहरे थे, उस मकान के निकट ही एक नई कोठी बन रही थी। एक दिन अकस्मात् निर्माणाधीन भवन की छत टूट पड़ी।
कई पुरुष उस खंडहर में बुरी तरह फँस गए। निकलने का कोई रास्ता नजर आता नहीं था। केवल चिल्ला कर अपने जीवित होने की सूचना भर बाहर वालों को दे रहे थे। मलबे की स्थिति ऐसी बेतरतीब और खतरनाक थी कि दर्शकों में से किसी की हिम्मत निकट जाने की नहीं हो रही थी।
राहत कार्य के लिए पहुंचे लोग यह सोचकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे थे कि कहीं थोड़ी-सी भी चूक हो जाए तो बचाने वालों के साथ ही भीतर घिरे लोग भी भारी-भरकम दीवारों में पीस सकते हैं।
तभी स्वामी जी भीड़ देखकर कुतूहलवश उस स्थान पर जा पहुंचे, वस्तु स्थिति की जानकारी होते ही वे आगे बढ़े और अपने एकाकी भुजाबल से उस विशाल शिला को हटा दिया, जिसके नीचे लोग दब गए थे।
वहाँ आस-पास एकत्रित लोग उनकी शारीरिक शक्ति का परिचय पाकर स्वामी जी की जय-जयकार करने लगे। उन्होंने सबको शांत करके समझाया कि यह शक्ति किसी अलौकिकता या चमत्कारिकता के प्रदर्शन के लिए आप लोगों को नहीं दिखाई है। वस्तुतः संयम की साधना करने वाला हर मनुष्य अपने में इससे भी विलक्षण शक्तियों का विकास कर सकता है।
 
 
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