द्वारका वासी शिव शर्मा के पुत्र सोम शर्मा नाम के ब्राह्मण थे। उनके पूर्व मृत चारों भाई तथा पिता परम सिद्ध थे। वे भगवान विष्णु के अत्यन्त भक्त थे।
हरिहर क्षेत्र में रात-दिन शुद्ध भाव से रहकर तपस्या करते हुए भगवान की आराधना कर रहे थे। वे सदा भगवान के ध्यान में लीन रहते और कभी भी सोते नहीं थे। वे सभी आशा तृष्णाओं का त्याग कर योगासन पर बैठे रहते थे।
संयोग की बात थी, उनका अन्तिम समय आ पहुँचा। इसी समय दैत्यों की एक टोली भी उनके तप में विघ्न डालने आ गयी। दैत्यों के भयानक शब्द कान में जाते ही उसकी मृत्यु हो गयी|
अतः दैत्यों की आंशिक स्मृति से गीता 8।9 के सिद्धांतानुसार उनका प्राण दैत्यराज हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु में प्रविष्ट हुआ। पर वहाँ भी साधना अनुसार गर्भकाल में ही नारद जी के दिव्य सात्विक, आध्यात्मिक उपदेश उन्हें सुनने को मिलने लगे। उन्हें अपने पूर्व जन्म के साधनादि कर्म भी स्मृत हो गये और जन्म के बाद उन्हें भगवान नृसिंह के साक्षात् दर्शन एवं उनकी पूर्ण कृपा की प्राप्ति हुई ।
‘कयाधु का यह पुत्र जातिस्मर था। उसे अपने पूर्व जन्म का सम्पूर्ण चरित्र स्मरण हो आया। उसने याद किया, वह पहले शिव शर्मा का सोम शर्मा नामक पुत्र था और देह त्याग के अनन्तर दानव-शरीर में प्रविष्ट हुआ।
हे ब्राह्मण! इस दानव शरीर में इस महानुभाव का नाम प्रह्लाद के रूप में विख्यात हुआ और यह (पूर्वजन्म के संस्कार के कारण) बालकपन में ही श्रीकृष्ण का विशेष रूप से स्मरण करने लगा।'
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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