Published By:धर्म पुराण डेस्क

भारत में अध्यात्मविद्या की प्रधानता

भारतवर्ष सदा से ही एक आध्यात्मिक देश रहा है। यहाँ तिल में तेल की भाँति जीवन के हर प्रसंग में अध्यात्म ही रचा-पचा रहता है। अध्यात्म को ही यहां सदैव सर्वाधिक महत्व दिया जाता रहा है। 

कहते हैं कि यहाँ का कंकर-कंकर शंकर है, उसका भी असली अभिप्राय यह है कि यहां की हर बात अध्यात्म के पवित्र रंग में रंगी होती है। यहाँ विश्व की भौतिक वस्तु को चाहे वह चिन्तामणि, कल्पवृक्ष या पारस पत्थर ही क्यों न हो, इतना अधिक महत्व नहीं दिया जाता जितना कि अध्यात्मविद्या को दिया जाता है। यहाँ तो अध्यात्मविद्या के सामने सभी वस्तुओं को तुच्छ या निर्मूल्य ही समझा जाता है।

वस्तुएँ तो दूर रहो, ज्ञान-विज्ञान की भी वे बातें जो अध्यात्म विद्या से रहित हैं, यहाँ उपादेय नहीं समझी जाती। वे भी वहीं तक प्रशंसनीय और ग्राह्य मानी जाती हैं, जहाँ तक वे अध्यात्मविद्या का पोषण करती हैं, उससे आगे नहीं। यहाँ अध्यात्म विद्या को दुनिया की समस्त विद्याओं में सर्वोपरि माना गया है। 

कहा गया है कि अन्य सर्व विद्याएँ तो क्षणिक और व्यावहारिक मात्र हैं, परन्तु अध्यात्म विद्या ही शाश्वत और पारमार्थिक विद्या है। अन्य विद्याएं तो अधिक से अधिक एक जन्म से जीव का उद्धार कर देने वाली हैं, परन्तु अध्यात्म विद्या तो जन्म-जन्मांतरों से जीवन उद्धार कर देती है। 

भारतीय संस्कृति और दार्शनिक परंपरा में अध्यात्म और आत्मज्ञान को सर्वोपरि माना जाता है, और इसलिए यह देश हमेशा से ही एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण और जीवनशैली के साथ जाना गया है। भारत की धार्मिक और दार्शनिक परंपरा जैसे कि हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, योग, वेदांत, और अन्य दर्शनिक प्रणालियों ने जीवन के आध्यात्मिक पहलु को प्रमुखत: रूप से गुरुत्व दिया है।

आध्यात्मिक शिक्षा और आत्मज्ञान का अध्ययन भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, और इसका मतलब है कि विद्यार्थी जीवन के अलावा आत्मा और आध्यात्मिक दिशा में भी शिक्षा प्राप्त करते हैं। यह सिर्फ वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा को ही नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और मानवीय मूल्यों को भी महत्व देता है।

भारत की परंपराओं में योग और ध्यान का महत्वपूर्ण स्थान है, जो आध्यात्मिक अनुभव और साक्षात्कार के लिए महत्वपूर्ण है। ध्यान और मेधावी संतों के गुरुओं के साथ आत्म-साक्षात्कार का माध्यम बने हैं, जिससे लोग अपनी आध्यात्मिक जीवन को महत्वपूर्ण धार्मिक मानते हैं।

भारत में गुरु-शिष्य परंपरा भी है, जिसमें आध्यात्मिक ज्ञान गुरु से शिष्य को पास किया जाता है। गुरु को आध्यात्मिक और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, और वे अपने शिष्यों को आत्मज्ञान और सत्य की ओर मार्गदर्शन करते हैं।

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