Published By:धर्म पुराण डेस्क

समय से पहले मेनोपॉज और हार्ट अटैक की रिस्क

महिलाओं के जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है मासिक चक्र। मेनोपॉज इस चक्र का अंतिम पड़ाव है और इस समय भी अपने स्वास्थ्य के प्रति सजगता रखना आवश्यक होता है। 

मेनोपॉज के समय और प्री-मेनोपॉज सिंड्रोम को लेकर कई शोध अनेक जानकारियां दे चुके हैं। इसी कड़ी में अब समय से पहले होने वाले मेनोपॉज और हृदय संबंधी समस्याओं को लेकर डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं।

समय से पहले मेनोपॉज और हार्ट अटैक की रिस्क ..

शोध का निष्कर्ष-

शोधकर्ताओं का कहना है कि मेनोपॉज किस समय होता है इस बात से हार्ट फेलियर की रिस्क का संबंध हो सकता है। खासतौर पर उन महिलाओं में जिनके पीरियड्स जल्दी खत्म हो जाते हैं और जो जिन्होंने कभी बच्चे को जन्म नहीं दिया होता उन महिलाओं में रिस्क का यह स्तर और भी बढ़ सकता है। 

इस शोध से जुड़ी डॉ.निशा पारिख, अस्सिटेंट प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को स्कूल ऑफ मेडिसिन का कहना है कि शोध के अंतर्गत यह पाया गया कि महिलाओं के प्राकृतिक चक्र के कुल समय का कम होना यानी मेनोपॉज का समय से पहले आ जाना, कोरोनरी हार्ट डिजीज की आशंका को बढ़ा सकता है जिसकी वजह से हार्ट फेलियर की आशंका भी बढ़ सकती है। 

शोध में यह भी पाया गया कि वे महिलाएं जिन्होंने कभी बच्चे को जन्म नहीं दिया है उनमें एक विशेष टाइप के हार्ट फेलियर की आशंका बढ़ सकती है जिसमें हृदय का बायां भाग उस तरह से रिलैक्स नहीं कर पाता जैसे उसको करना चाहिए।

सामान्य समय और अनियमितता-

विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य तौर पर औसतन एक महिला में मेनोपॉज की स्थिति 45 वर्ष की उम्र के बाद बनती है लेकिन इस समय में कई कारणों से परिवर्तन भी हो सकता है। 

साथ ही मेनोपॉज के लक्षण भी काफी साल पहले से नजर आने लग सकते हैं। हाल ही में हुए कुछ शोध यह भी स्पष्ट करते हैं कि आजकल 35 साल के आस-पास भी मेनोपॉज के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। 

इसके पीछे भी वातावरण, जीवनशैली तथा खान-पान में परिवर्तन सहित अन्य कई कारक जिम्मेदार हैं जिनके कारण कम उम्र में ही मेनोपॉज के लक्षण उभरने लग सकते हैं। इसके लक्षणों को ध्यान में रखकर समय-समय पर चिकित्सक से सलाह लेते रहना जरूरी है ताकि लक्षणों की तीव्रता को कम किया जा सके। साथ ही नियमित व्यायाम, खान-पान आदि को भी जीवन का आवश्यक हिस्सा बनाना जरूरी है।

हार्मोन की भूमिका-

इस शोध के पूर्व में हुए कुछ शोध इस बात की और इशारा कर चुके हैं कि महिलाओं के शरीर में संतान उत्पत्ति की उम्र के दौरान मौजूद सेक्स हार्मोन्स, हृदय रोगों की आशंका के स्तर पर प्रभाव डाल सकते हैं। 

इन हार्मोन्स के स्तर पर गर्भावस्था तथा मासिक चक्र का असर हो सकता है। यानी इन दोनों ही कारणों से हारमोन्स के स्तर में घट-बढ़ हो सकती है, जिसका असर हृदय पर पड़ सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे में हार्मोन्स की भूमिका और कार्यप्रणाली को लेकर आगे भी शोध किए जाने की आवश्यकता है।


 

धर्म जगत

SEE MORE...........