परब्रह्म में निषेधात्मकता:
परब्रह्म में निषेधात्मकता का तत्त्व आते ही, भान्तरिकता और अस्तित्व (नाम-रूप) की प्रक्रिया प्रकट होती है।
मूल एकता:
विश्व की सम्पूर्ण गतिविधि मूल एकता से जुड़ी होती है, जो सत् और असत् के संघर्ष में उत्पन्न होती है।
सत् और असत् का संघर्ष:
सत् और असत् के मध्य संघर्ष, परमात्मा की ऊपरी सीमा से नीचे तक फैला होता है, जहां असत् का प्रभाव न्यूनतम है।
विश्व की प्रक्रिया:
विश्व की प्रक्रिया सत् और असत् के दो मूल तत्वों की पारस्परिक क्रिया है, जो परमात्मा की प्रकृति पर आधारित है।
प्रकृति का कारण:
प्रकृति का कारण तनाव, संसार की सृष्टि की प्रक्रिया में सत् और असत् के बीच संघर्ष का सृजन करती है।
असत् की अवधारणा:
असत्, जो अपूर्णताओं के लिए जिम्मेदार है, संसार में एक आवश्यक तत्व है, जिसमें परमात्मा के विचार मूल होते हैं।
दिव्य रूप और प्रकृति:
दिव्य रूप (पुरुष) और भौतिक तत्त्व (प्रकृति) एक ही आध्यात्मिक समस्त के अंग है, जो संसार को बनाए रखने में योगदान करते हैं।
असत् का मूल तत्त्व:
गीता द्वैतवाद का समर्थन नहीं करती, क्योंकि असत् का मूल तत्त्व सत् पर निर्भर है, और भगवान के दर्शन के लिए असत् की वास्तविकता में एक आवश्यक महत्वपूर्ण वस्तु है।
संसार का कारण:
संसार का होना सत् और असत् के बीच चल रहे संघर्ष की प्रक्रिया का एक परिणाम है, जिसमें प्रकृति सत् की प्रवाह को अविराम बनाए रखने का कारण बनती है।
अब और शून्य:
सच्चे अस्तित्वमान जगत्, संसार, में हमें सत् और असत् के दो मूल तत्वों के बीच संघर्ष दिखाई पड़ता है, जो आत्मा की सत्यता को प्रमाणित करता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024