Published By:धर्म पुराण डेस्क

राहु-केतु और कालसर्प योग

राहु और केतु, जो छायाग्रह हैं, वास्तव में किसी ग्रह की तरह दृष्टि नहीं रखते हैं। इनका प्रभाव उनके संयोजन में होता है। राहु का जन्म नक्षत्र भरणी और केतु का जन्म नक्षत्र आश्लेषा है। यह ग्रह अपने दृष्टिहीन होने के कारण ज्योतिष में विशेष महत्वपूर्ण है।

राहु का गुण-अवगुण

राहु जिन गुणों और अवगुणों को स्वयं में रखता है, उनमें शनि के साथ समानता है। शनि की तरह ही राहु भी आध्यात्मिक चिंतन, विचार, और गणित को प्रेरित करता है। राहु के गुण-अवगुण उसके संयोजन के ग्रहों के साथ होने पर निर्भर करते हैं।

'कालसर्प योग': एक विशेष योग

राहु-केतु का संयोजन 'कालसर्प योग' के रूप में जाना जाता है, जिसके प्रभाव से जातक के जीवन में विभिन्न कठिनाइयां आ सकती हैं। इसके प्रभाव से जातक अपने लक्ष्यों को हासिल करने में परेशानी महसूस कर सकता है।

ग्रहों के साथ संयोजन

राहु और केतु के संयोजन को ग्रहों के साथ देखना आवश्यक है, क्योंकि इससे उनका प्रभाव निर्भर करता है। उनके मित्र ग्रहों के साथ योग बनता है जो जातक को सकारात्मक प्रभाव प्रदान कर सकते हैं।

'कालसर्प योग' के प्रभाव

'कालसर्प योग' से प्रभावित जातक का भाग्य प्रवाह में अटक सकता है और उसे जीवन में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इस योग के प्रभाव से जीवन में सामाजिक, आर्थिक, और आत्मिक प्रकार की कठिनाइयां आ सकती हैं।

समाप्ति

'कालसर्प योग' का अध्ययन करते समय यह महत्वपूर्ण है कि ग्रहों के संयोजन, उनके स्थान, और उनके गुण-अवगुणों का ध्यान रखा जाए ताकि सटीक फलादि निकाला जा सके। 'कालसर्प योग' के प्रभाव को समझकर जातक अपने जीवन की दिशा में सबसे अच्छा निर्णय लेता है।

धर्म जगत

SEE MORE...........