उन्होंने 31 मई 1767 से 13 अगस्त 1795 तक ऐसा सुशासन दिया जिसकी मिसाल नहीं मिलती। पवित्र नर्मदा के तट पर बसी उनकी राजधानी महेश्वर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल भी है।
कुछ वर्ष पहले महेश्वर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। महेश्वर का कण कण पवित्र है।
अहिल्याबाई के दरबार कक्ष में उनके राज-दर्शन के सूत्र लिखे हैं, जो उनके पवित्रतम जीवन का दर्शन भी हैं। इन्होंने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं लिख लाया। ये सूत्र वर्तमान शासकों को अवश्य आत्मसात करना चाहिए।
ये सूत्र इस प्रकार हैं:-
* मेरा कर्तव्य अपनी प्रजा की ख़ुशहाली सुनिश्चित करना है।
* मैं जो कुछ भी करती हूँ, उसके लिये स्वयं जिम्मेदार हूँ।
* मैं जो कुछ भी करती हूँ, उसके लिये ईश्वर के प्रति जवाबदेह हूँ।
* मेरे पास जो कुछ है, वह मेरा नहीं है।
* मैं जो कुछ भी प्राप्त करती हूं, वह मुझ पर ऋण है। मुझे नहीं पता कि मैं इसे कैसे चुका पाऊँगी।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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