 Published By:दिनेश मालवीय
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यह बात तो बहुत व्यापक रूप से ज्ञात है कि लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र पार करने के लिये राम जी की सेना ने करीब चालीस किलोमीटर का सेतु बनाया था। रामेश्वरम से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक निर्मित इस सेतु का बड़ा भाग आज भी मौजूद है।
वैज्ञानिक रूप से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि लगभग सात हज़ार साल पुराना यह सेतु मानव निर्मित है। इसे पश्चिमी देशों मे एडम् ब्रिज भी कहा जाता है। इस रामसेतु को लेकर बहुत विवाद के बाद अब इसके मानवनिर्मित होने पर कोई शंका नहीं रह गयी है। लेकिन श्रीराम की सेना इतनी बड़ी थी कि जिसकी गिनती करना असंभव था। इतनी विशाल सेना के समुद्र पार जाने के लिये एक पुल पर्याप्त नहीं था।
रामचरितमानस को ही ध्यान से पढ़ने पर स्पष्ट पता चल जाता है कि इसके लिये एक नहीं तीन पुलों का उपयोग किया गया था। इसके प्रमाण स्वयं रामचरितमानस में मौजूद हैं। पहला पुल तो नल और नील नामक वानरों ने बनाया था। उनके बारे में कथा आती है कि ये दोनो देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा के पुत्र थे।
बचपन मे ये दोनो बहुत शरारती थे और ऋषियों का सामान उठाकर समुद्र मे फेंक देते थे। परेशान होकर ऋषियों ने उन्हें यह श्राप दिया कि तुम्हारे हाथ से फेंकी हुयी कोई भी चीज़ पानी मे नहीं डूबेगी। यही श्राप लंका के लिये पुल बनाने मे वरदान साबित हुआ। उनके द्वारा डाले गये पत्थर पानी मे नहीं डूबे और आपस मे जुड़कर उन्होंने पुल का रूप ले लिया। यह पुल पाँच दिन मे बन गया था। इस प्रकार एक पुल तो यह बन गया।
दूसरा पुल भगवान श्रीराम के नाम के प्रताप से बना। इसमे पत्थरों पर राम नाम अंकित किया गया और उनके नाम के प्रताप से पत्थर तैरते हुये आपस मे जुड़ते गये। एक पत्थर पर "रा" अंकित किया जाता था और दूसरे पर "म". दोनो अपने आप आपस मे जुड़ते चले जाते थे। इन पत्थरों के जुड़ने से श्रीराम के प्रताप से एक मजबूत पुल बन गया।
गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि- " श्री रघुवीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान " अब देखते हैं कि तीसरा पुल कौन सा था। नल और नील द्वारा निर्मित पुल पर जब श्रीराम जाकर खड़े हुये, तब समुद्र के करोड़ों छोटे बड़े सभी जीव जंतु उनके दर्शन के लिये एक साथ प्रकट हो गये। वे उनकी सुंदरता को एकटक निहारते रहे। उनकी संख्या इतनी अधिक थी कि वे एक दूसरे से सटे हुए थे।
वे समुद्र के एक छोर से दूसरे छोर तख इस प्रकार कतार लगाये हुए थे कि समुद्र का जल तक दिखाई नहीं देता था। इस प्रकार इन जंतुओं का एक पुल जैसा निर्मित हो गया। तुलसीदास जी कहते हैं कि इन जंतुओं पर चढ़कर भी बड़ी संख्या मे वानर सेना पार उतर गयी। इस प्रकार यह तीसरा पुल था। इस प्रकार हम देखते हैं कि श्रीराम की विशाल वानर सेना एक नहीं बल्कि तीन पुलों से समुद्र पार कर लंका पहुँची थी।
 
 
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