Published By:दिनेश मालवीय

रामकथा: हरि अनंत हरि कथा अनंता--------दिनेश मालवीय

रामकथा: हरि अनंत हरि कथा अनंता--------दिनेश मालवीय

हमारी संस्कृति में कहा गया है कि हरि अनंत हरि कथा अनंता. रामकथा युगों-युगों से प्रचलित है. भारत के लगभग सभी प्रान्तों और बहुत से अन्य देशों में रामकथा किसी न किसी रूप में प्रचलित रही है.

हर प्रांत और देश की सभ्यता और सांस्कृतिक धाराओं के अनुसार रामकथा के बाहरी स्वरूप में अंतर मिलते हैं, लेकिन कथा का मूल स्वरूप नहीं बदलता.

हर कवि, विशेषकर महाकवि रामकथा को माध्यम बनाकर अपने देश-काल-परिस्थिति के अनुसार सदियों से अपनी बात कहते आये हैं. लगभग चार सौ वर्ष पहले संत तुलसीदास के रूप में एक ऐसे महाकवि का अभ्युदय हुआ, जिन्होंने “रामचरितमानस” जैसी कालजयी रचना कर उस समय देश और समाज को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. संत तुलसीदास ने इसके पहले भी कुछ पुस्तकों की रचना की, लेकिन वे इतनी लोकप्रिय नहीं हुई, जितनी “रामचरितमानस”.

इसका कारण यह है कि जब तक कवि चेतना की बहुत उच्च भूमिका तक नहीं पहुँचता, तब तक उसके द्वारा कालजयी रचना नहीं हो सकती. संत तुलसीदास जीवन भर भगवान राम के जीवन को आधार बनाकर महाकाव्य की रचना के लिए प्रयास करते रहे. लेकिन ऐसी रचनाएं प्रयास करके नहीं लिखी जा सकती. कवि के मन का शुद्धिकरण होने पर ये भीतर से प्रकाशित होती हैं. तुलसीदास ने स्वयं लिखा है कि अवधपुरी में रामनवमी के दिन उनके ह्रदय से यह चरित प्रकाशित हुआ. जब ऐसा होता है, तो व्यक्ति के रूप में कवि एक तरफ हो जाता है. दिव्य शक्ति उसे पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लेती है. उसके माध्यम से सब कुछ ऐसे लिखाता रहता है, कि उसे स्वयं आश्चर्य होता है.ऐसा ही संत तुलसीदास के साथ हुआ.

मित्रो! जीवन के परम शाश्वत सत्य सीधे-सीधे नहीं कहे जा सकते. उन्हें काव्य, बिम्ब, प्रतीकों में ही कहा जा सकता है. उनके अर्थ ध्वनित होते हैं. इसलिए भारत का सारा धर्म-साहित्य काव्य में रचा गया है. इसके अलावा कोई विकल्प ही नहीं होता. जब काव्य रचना की जाती है, तो उसमें अतिरंजना और कल्पना आना बहुत स्वाभाविक होता है. इसका उद्देश्य पाठक को अपनी बात ठीक से समझाना होता है. सामान्य पाठक या श्रोता के साथ दिक्कत यह होती है कि वह कविता के शाब्दिक अर्थ को ही उसका वास्तविक अर्थ समझ लेता है. इससे बहुत से भ्रम पैदा होते हैं और वास्तविक अर्थ कभी समझ में ही नहीं आता.

इस सन्दर्भ में एक बहुत सुंदर उदाहरण याद आता है. “राम” नाम का हमारे धर्म में बहुत महत्व है. इसकी महत्ता बताते हुए कहा गया है कि “राम नाम केवलं”. इस नाम को जपने से मनुष्य को सब कुछ मिल जाता है. इस बात को भक्तों के मन में गहराई से बैठाने के लिए एक रूपक रचा गया. इसके अनुसार, वेद रूपी महासमुंद से रामायण का प्रादुर्भाव हुआ. इसमें 100 करोड़ श्लोकों में राम के चरित्र का वर्णन किया गया. इस रामचरित के 100 करोड़ श्लोकों के बँटवारे के लिए देव, दानव और मनुष्य आपस में लड़ने लगे. जब बँटवारा शुरू हुआ तो 33-33 करोड़ श्लोक तीनों के हिस्से में आये.

एक करोड़ श्लोक बच गए. फिर तीनों के बीच 33-33 लाख श्लोक बाँट दिए गये. फिर भी एक लाख श्लोक बच गये. इस बार 33-33 हज़ार श्लोक बाँट दिए गये. इसके बाद भी एक हज़ार श्लोक बच गये. फिर 300-300 श्लोक बाँट दिए गये. इस पर भी 100 श्लोक बच गये. इसके बाद इन श्लोकों को 33-33 तीनों को बाँट दिया गया. इस पर भी एक श्लोक बच गया, जिसमें 32 अक्षर थे. इसे 10-10 करके बाँटा गया. इस तरह दो अक्षर बच गये. इसके विभाजन की समस्या बहुत जटिल थी, क्योंकि अक्षर 2 थे और पाने वाले तीन. कोई हिसाब नहीं लगा पाया तो भगवान शिव से पूछा गया. उन्होंने सहज ही कह दिया कि दोषों अक्षरों को हमें दे दो. सर्वसम्मति से उन्हें ये दो अक्षर दे दिए गये. ये दो अक्षर “राम” थे.

संत तुलसीदास ने लिखा है कि भगवान शिव दिनरात इन्हीं दो अक्षर के राम नाम का जप करते रहते हैं.  देखिये किस तरह इस रूपक के रूप में यह बताया गया कि “राम” का नाम सारे वेदों का सार है.

भगवान राम का चरित्र मनुष्य के लिए आदर्श माना गया है. आज पारिवारिक विघटन, जीवन मूल्यों के बिखराव, हिंसा, क्रोध, बेईमानी, क्रूरता का हर जगह बोलबाला है. पापों की आग में दुनिया जल रही है. सम्पूर्ण मानव जाति का अस्तित्व ही संकट में आ गया है.

भगवान राम का चरित्र और उनकी कथाएं भारत ही नहीं पूरे संसार के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती हैं. विशेषकर आज के युवाओं को भगवान राम के चरित्र और जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं. सभी रामायणों और अन्य ग्रंथों में प्रतीकों, रूपकों और बिम्बों में बात कही गयी है. ईश्वर की प्रेरणा से इन्हीं कथाओं, रूपकों, प्रतीकों और बिम्बों के पीछे निहितार्थों की आज के सन्दर्भों में चर्चा हम हर रविवार को हम चर्चा करेंगे.


 

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