Published By:धर्म पुराण डेस्क

शिव भक्त था रावण, फिर क्यों हुआ पतन? एक शाप भी बना कारण 

प्रत्येक मनुष्य के नामि व हृदयस्थल में ही प्राण वायु रहती है। नाभि देश को पराशक्ति भी कहा जाता है। यह नागिन के आकार की है और शरीर में साढ़े तीन लपेटे (कुण्डली) मारकर अपनी पूँछ को अपने मुँह में दबाए नाभि में रहती है। इसी कारण नाभि को अमृत कुण्ड कहा जाता है।

परमशिव भक्त रावण द्वारा कुण्डलिनी जाग्रत कर अपनी सम्पूर्ण आध्यात्मिक शक्ति नाभि में स्थापित कर दी थी इसीलिए कहते हैं कि रावण की नाभि में अमृत है। इसके पश्चात् ही रावण अणिमा, गरिमा और लघिमा सिद्धियों में पारङ्गत हुआ। रावण द्वारा कठोर तप के समय र व" (शोर) करने से भगवान् रुद्र ने इनका नाम रावण रखा।

रुद्र से ही इन्हें एक साथ दस धनुष चलाने की कला सीखी थी इसलिए रावण को दशकन्धर कहा गया। सुरसा का पुत्र कालदन्त नाग रावण का अभिन्न मित्र था। इनके सहयोग से ही रावण ने कई द्वीपों पर कब्जा किया था। रावण द्वारा बसाया शिवदान आज का दक्षिण अफ्रीका है और मयदेश वर्तमान अमेरिका है।

रावण के पिता विश्रवा कर्मकाण्डी (पूजा-विधान के जानकार) विद्वान् थे। श्री गणेश के स्वसुर श्री विश्वकर्मा द्वारा भगवान् शिव-पार्वती के लिए निर्मित लंका में गृह प्रवेश वैदिक विधि-विधान से इन्होंने ही करवाया था, दक्षिणा में जब लंका ही शिव से माँगी तो माँ पार्वती द्वारा शाप दिया कि तेरा वंश ही नष्ट हो जायेगा। 

रावण सहित पूरे खानदान के पतन का मुख्य यही कारण था। रावण के बाबा ऋषि पुलस्त्य ब्रह्मा के पुत्र थे। रावण की पत्नी मन्दोदरी की माँ हेमा भी विश्वकर्मा की पुत्री अप्सरा कुल की थीं। हेमा का देवराज इन्द्र ने अपहरण किया था। 

रावण का त्याग

एक बार कैलाश में महाशिवरात्रि (शिवोत्सव) के समय रावण गन्धर्व वीणा बजा रहा था कि अचानक वीणा का तार टूट गया, किन्तु रावण ने तत्काल अपने योग बल से हाथ की नस निकालकर टूटा तार जोड़ दिया, इस बीच लय-ताल नहीं टूट पाई। रावण संगीत विद्या में विशेष निपुण था तथा कई साजों (वाद्य यंत्रों) का अविष्कार भी किया था।

रावण के सहयोगी ताड़का-मारीच

राजा सुन्द धर्मात्मा जम्भ का प्रतापी पुत्र था। ये दक्षिणारण्य (दक्षिण अफ्रीका) में ऋषि अगस्त्य के साथ युद्ध में मारा गया था। भरतखण्ड में नेमिषारण्य के राजा यज्ञराज सुकेतु की पुत्री ताड़का इनकी पत्नी थी जो यक्षिणी सिद्धि में निपुण थी। इन दोनों का पुत्र मारीच नाग रूप तथा अनेक रूपों को बदलने में माहिर था। इन दोनों (माँ और पुत्र) को रावण ने सहारा देकर अपना सहयोगी बनाया

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