Published By:धर्म पुराण डेस्क

जागरण का असली अर्थ? जागरण क्या है? जागरण कैसे होता है?

जागरण-

जागरण से हमारा मतलब रतजगे से नहीं है जिसमें किसी विशेष प्रयोजन से रात भर जागने का कार्यक्रम रहता है और कुछ लोग रात भर सोते नहीं हैं। 

आजकल लाउडस्पीकर लगाना फैशन बन गया है सो दूसरों को भी जबरन जागरण करने पर मजबूर कर देते हैं। लेकिन हमारा तात्पर्य इस प्रकार के जागरण से नहीं बल्कि हमारा तात्पर्य हमारे अवचेतन के जागरण से है। 

आपके अंदर चेतना की अंतर्धारा (अन्दर करेंट) सतत प्रवाहित होती रहती है जैसे वातावरण (एटमॉस फेयर) में विद्युत तरंगें प्रवाहित होती रहती हैं जो रेडियो की ध्वनि और दूरदर्शन (टी.वी.) के दृश्य यहां वहां पहुंचाती रहती हैं। पहले आप चेतना की अंतर्धारा को समझ लें।

जैसे मान लीजिए, एक कमरे में कुछ लोग सो रहे हैं और उनमें एक व्यक्ति का नाम कान्तिलाल है। आधी रात का समय है सब गहरी नींद में सो रहे हैं। अब कोई कान्तिलाल का नाम पुकार कर जगाने लगे तो और किसी को नहीं सुनाई देगा लेकिन कान्तिलाल की नींद खुल जाएगी और वह बोल उठेगा कौन है भई ' आधी रात की गहरी नींद में भी अन्दर कोई सुन लेता है कि मुझे बुलाया जा रहा है। यह अंतर्धारा का काम है। 

एक मां अपने शिशु को सीने से लगाए सो रही होती है। बादल गरजते हैं तो उसकी नींद नहीं खुलती पर बच्चा ज़रा सी आवाज़ करता है तो उसकी नींद खुल जाती है और वह अपने बच्चे को पुचकारने लगती है और नींद में होते हुए भी हाथ फेरने लगती है। अवचेतन में कोई जान जाता है कि बच्चा रोया। यह जान लेने वाली ही अंतर्धारा है|

एक और जोरदार उदाहरण लीजिए आप को सुबह को जल्दी उठकर यात्रा पर जाना होता है तब आप संकल्पपूर्वक यह विचार कर सो जाते हैं कि आपको सुबह चार बजे उठना है और सुबह चार बजे खुदबखुद आपकी नींद खुल जाती है। 

यह बड़े मजे की बात है कि अन्दर की चेतना के पास घड़ी नहीं होती न आप आंख खोल कर देखते ही हैं कि क्या बजा है फिर भी ठीक चार बजे जैसे आपको कोई जगा देता है कि चलो उठो चार बज रहा है। सोते हुए भी आपके अन्दर कोई जाग रहा होता है और न सिर्फ जाग ही रहा होता है बल्कि उसे बिना घड़ी देखे यह भी पता होता है कि इस समय चार बजा है तभी तो वह ठीक चार बजे आपको जगा देता है। 

यह कितने आश्चर्य की बात है कि आप अपने अवचेतन मन को जितने बजे उठने की प्रेरणा का संकल्प देकर सोते हैं ठीक उतने ही बजे अवचेतन आपको जगा देता है। कौन है यह जिसे काल का भी ज्ञान रहता है और कर्तव्य का भी। इसी प्रवृत्ति को जाग्रत बनाये रखना सही रूप में जागरण है।
 

धर्म जगत

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