बहुत मेहनत करने के बाद भी केवल इतना मिलता है कि दाल रोटी मुश्किल से प्राप्त की जाये। इस स्थिति में जब खुद की पूर्ति नहीं हो पाएगी तो घर में शादी के बाद का खर्चा और माता की हठधर्मी तथा पिता का सुख दुख में सहभागी नहीं होना एक प्रकार से वैवाहिक जीवन और विवाह दोनो के लिये ही दिक्कत वाला माना जायेगा|
इस शनि के लिए जो उपाय शास्त्र सम्मत भी है और कुछ मनोवैज्ञानिक भी है साथ मे आज के युग के हिसाब से उत्तम भी है, को करने से इस बाधा का निवारण हो सकता है।
दसवें स्थान के शनि का रास्ता बारहवें भाव में जाने से चौथे भाव मे जाने से और सातवे भाव मे जाने से मिलता है.
दसवा शनि का स्थान बदलना घर से दक्षिण-पूर्व दिशा मे पलायन कर जाना हितकर होता है कारण अक्सर मान मर्यादा और रहने वाले स्थान की संगति का असर भी आगे नही बढने देता है इसके लिये अगर रहने वाले स्थान को बदल दिया जाये तो शनि अपना फ़ल उचित देने लगता है.
लेकिन जो लोग इस शनि के प्रभाव से अपने निवास को कार्य स्थान मे बदले हुये या अपने निवास को कार्य स्थान मे ही बनाये हुये है वे इस कारण को भी बदल कर अपने कार्यों और वैवाहिक जीवन मे सुधार ला सकते है.
दसवें शनि का पंचम त्रिकोणीय भाव परिवार से विमुखता से भी माना जाता है यानी खुद के परिवार और जन्म के बाद मिलने वाले धन से दूर हो जाना लेकिन इसे भली भांति समझने के लिये अपने को अपने ही परिवार में उपस्थिति को देना और अपनी सामाजिक पारिवारिक व्यवहारिक नीतियों को बदलने के बाद सुधार का आना भी माना जाता है।
शिक्षा से तथा बुद्धि से आमने सामने का भेद रखने से अक्सर उन्ही कामो को किया जाता है तो करके सीखे जाते है और उन कामो के लिये बहुत समय की जरूरत पडती है, अगर कामो को करके सीखने वाली प्रक्रिया को बदल कर पढकर सीखना और फ़िर करना जारी किया जाये तो यह शनि अपनी नीति को बदल सकता है.
दसवें शनि का एक रूप और भी देखा जाता है कि जातक व्यवसाय करने की अपेक्षा नौकरी करने में ही रुचि रखता है इसका भी एक कारण है कि वह अपने दिमाग को कम से कम प्रयोग करने के बाद चलने वाली जिंदगी को जैसा चल रहा है वैसा ही चलने के लिये भी अपनी रुचि को प्रदर्शित करता है इसे बदला जाये और उन कामों को करने का मानस बनाया जाए|
जहां कार्य को सामूहिक रूप से किया जाता है और मिलकर लाभ को बांटा जाता है इस प्रकार से भी शनि का विभाजन कई स्थानों पर हो जाने के बाद धन की और पारिवारिक सुख की बढ़ोतरी होने लग जायेगी.
पिता के रूप में जडता को बदलने के लिये पिता की सेहत का ख्याल किया जाए और उन्हें कार्यों में सहायता की जाए, माता की हठधर्मी को रोकने के लिये उन्हें अपने मर्जी के कार्यों में लगा रहना चाहिए तथा उनकी किसी राय को मिलने से पहले ही राय को जान लेना चाहिये|
इस प्रकार से उन्हें यह नहीं लगेगा कि वे जो कह रही है कोई सुन नहीं रहा है और उस प्रकार से उन्हें चिल्लाना या क्रोध करने की आदत पड जाती है, अक्सर यह शनि माता को कानो के रोग भी देता है जिससे उन्हें जोर से बोलने की आदत हो जाती है इस काम को भी किसी अच्छे ई एन टी का चेकअप करवाकर ठीक करना सही हो सकता है.
शादी अगर हो गयी है तो जीवन साथी को सांस की बीमारी भी होती देखी गयी है, यह बीमारी लगातार शनि वाले कामों में लगे रहने से या अधिक समय ठंडे और सीलन भरे माहौल में रहने से या इसी प्रकार के देशों में रहने से भी होता है
अक्सर देखा जाता है कि यह शनि घर के अन्दर के काम और जहां भी काम किया जाता है वहां पर बहुत सी जिम्मेदारियों को दे देता है इस प्रकार से न तो भोजन की क्रिया समय से हो पाती है और न ही खुली धूप में जाया जा सकता है इस काम के लिये जातक अपने जीवन साथी को संभालने के लिये और उपरोक्त कारणों को रोकने के बाद भी अपनी जीवन रेखा को संभाल सकता है.
अक्सर देखा जाता है कि दसवे शनि के होने पर लोग धर्म और भाग्य को नही मानते है इस प्रकार से जो भी सहायता उन्हे भाग्य से मिलने वाली होती है वह फ़्रीज हो जाती है जैसे भाग्य के बाद ही कर्म का घर आता है और कर्म के घर मे शनि होने से जो भी भाग्य से मिला है वह फ़्रीज हो जाता है|
इसलिये जातक को अपने धर्म के अनुसार पूजा पाठ और सामाजिक नियमो को भी निभाना सही है,जो किया जा रहा है वह तो सही है लेकिन जो किया जा रहा है उसका फ़ल भी सही मिले तो वह कारण केवल भाग्य के कारण ही मिल सकता है.
दसवें शनि के होने पर जातक को पीठ की बीमारी भी होती देखी जाती है यह उनके अधिक काम करने और भोजन आदि में समय के अभाव या कम मिलने के कारण भी देखा जा सकता है इसलिये जातक को समय से भोजन और समय से नींद का निकलना भी जरूरी है, साथ ही सोने वाले स्थान पर बजाय कठोर वस्तुओं के मुलायम वस्तुओं का उपयोग करना भी ठीक रहता है.
इस शनि के कारण अक्सर उम्र की तीसरी सीढी पर आकर कमर झुक जाती है या किसी प्रकार से रीढ़ की हड्डी की बीमारी हो जाती है इसलिये ध्यान रखना जरूरी है.
दसवे शनि के लिये पुरुष और स्त्री दोनो ही बायें हाथ की बीच वाली उंगली में ही नीलम आदि को धारण कर सकते है,अगर राहु अष्टम मे है तो नीलम का पहिनना खतरा भी दे सकता है.तब शनि के मंत्रो के जाप करने के बाद ही सफ़लता मिलती है.
इस शनि में एक बात और भी देखी जा सकती है कि माता परिवार से कोई न कोई आकर घर में टिका होता है उसका सम्मान करना भी जरूरी होता है.
दसवें शनि को दूर करने का एक उपाय और भी माना जाता है कि रहने वाले स्थान पर पूजा आदि में लगातार दीपक का जलाया जाना.
शरीर और कार्य में अधिक आलस आने पर मूंगा से बनी प्रवाल भस्म को शहद के साथ प्रयोग करना.
तुरंत शादी और वैवाहिक जीवन मे फ़ायदा के लिये मजदूरों को भोजन देने की क्रिया को शुरु कर देना.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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