 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जबलपुर के पास नर्मदा नदी के किनारे स्थित गौरी घाट नामक कस्बे में एक गरीब महिला भिक्षा मांग कर अपना जीवन-यापन करती थी। एक दिन वह बीमार हो गयी, किसी दयावान व्यक्ति ने उसे इलाज के लिये 500 रु. का नोट देकर कहा कि 'माई! इससे दवा खरीदकर खा लेना।' वह भी उसे आशीर्वाद देती हुई अपने घर की ओर बढ़ गयी।
अँधेरा घिरने लगा था, रास्ते में एक सुनसान स्थान पर दो लड़के शराब पीकर उधम मचा रहे थे। वहाँ पहुँचने पर उन लड़कों ने भिक्षापात्र में 500 रु. का नोट देखकर शरारत वश वह पैसा अपनी जेब में डाल लिया, महिला को आभास तो हो गया था, पर वह कुछ बोली नहीं और चुपचाप अपने घर की ओर चली गयी।
रात में उसकी तबीयत और भी अधिक बिगड़ गई और दवा के अभाव में उसकी मृत्यु हो गयी। सुबह होने पर दोनों शरारती लड़के नशा उतर जाने पर अपनी इस हरकत के लिये खुद को शर्मिन्दा महसूस कर रहे थे।
वे शाम को उस भिखारिन को रुपये देने के लिये इन्तजार कर रहे थे। जब वह नियत समय पर नहीं आयी तो वे पता पूछकर उसके घर पहुँचे, जहाँ उन्हें पता चला कि दवा न खरीद पाने के कारण वृद्धा की मृत्यु हो गयी थी। यह सुनकर वे स्तब्ध रह गये कि उनकी एक शरारत ने किसी की जान ले ली थी। इससे उनके मन में स्वयं के प्रति घृणा और अपराधबोध का आभास होने लगा|
उन्होंने अब कभी भी शराब न पीने की कसम खाई और शरारतपूर्ण गतिविधियों को भी बंद कर दिया। उन लड़कों में आये इस अकस्मात और आश्चर्यजनक परिवर्तन से उनके माता-पिता भी आश्चर्यचकित थे ।
जब उन्हें वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो उन्होंने हृदय से मृतात्मा के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए अपने बच्चों को कहा कि तुम जीवन में अच्छे पथ पर चलो और वक्त आने पर दीन दुखियों की सेवा करने से कभी विमुख न होओ, यही तुम्हारे लिये सच्चा प्रायश्चित होगा।
 
 
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