श्वास-प्रश्वास संस्थान का शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। यह रक्त शुद्ध करने का एक अवयव (यंत्र) है।
एक दिन में हृदय 8000 लीटर रक्त का संचालन पूरे शरीर में करता है और उतना ही रक्त पूरे शरीर का विकार लेकर वापस हृदय में आता है। हृदय इसे फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजता है, जिसे श्वास-प्रश्वास संस्थान शुद्ध कर पुनः वापस हृदय के पास भेज देता है। 15 सेकंड का यह चक्र जीवन पर्यन्त बिना रुके चलता रहता है।
फेफड़ों के खराब होने से बहुत से रोग जैसे नजला, जुकाम, खांसी, निमोनिया, दमा, ब्रोंकाइटिस, प्लुरिसी, तपेदिक आदि जानलेवा रोग भी हो जाते हैं। व्यक्ति श्वास नासिका के रास्ते से लेता है। नासिका में लगे यंत्र श्वास को गर्म करते हैं, छानते हैं और फिर श्वास फेफड़ों में पहुँचती हैं।
फेफड़े स्पंज की तरह होते हैं। इनमें करोड़ों छिद्र होते हैं। इन्हीं छिद्रों में हृदय से रक्त आकर भरता है। ऑक्सीजन भी इन्हीं छिद्रों में आती है, जो रक्त के दूषित तत्वों को जलाती है और रक्त को शुद्ध करती है तथा विकार को कार्बन डाइऑक्साइड गैस के रूप में प्रश्वास द्वारा बाहर कर देती है। फेफड़े सिर्फ ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं।
श्वास-प्रश्वास यंत्र को चौबीस घंटे काम करना पड़ता है। इसलिए उसे निरोग रखना अत्यंत ही आवश्यक है। व्यक्ति की पाचन क्रिया से भी इसका बहुत ही गहरा रिश्ता है। हजम हुए भोजन से बने रक्त की ऑक्सीजन से जब तक पक्वीकरण की प्रक्रिया नहीं होती है, तब तक वह शरीर को ऊर्जा नहीं देता है। इसलिए श्वास-प्रश्वास संस्थान के आरोग्य पर विशेष ध्यान देना बहुत ही जरूरी है।
श्वास-प्रश्वास संस्थान को स्वस्थ रखने के उपाय योगासन और प्राणायाम श्वास-प्रश्वास संस्थान को स्वस्थ रखने में विशेष भूमिका अदा करते हैं।
नासिका में दो छिद्र है-वाया, जिसे इड़ा (चन्द्र नाड़ी) और दाया, जिसे पिंगला (सूर्य नाड़ी) कहा जाता है। वायां ठंडक और दायां गर्मी प्रदान करता है। शरीर की गर्मी का संतुलन बनाये रखने के लिए यदि गर्मी की जरूरत होती है तो दाया स्वर चलता है। यदि ठंडक की आवश्यकता होती है तो बाया स्वर चलता है। यह तभी संभव हो पाता है, जब दोनों नासिकाएं खुली रहती हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए इनका खुला रहना जरूरी है।
नासिका छिद्रों को खुला रखने के लिए सूत्रनेति और जलनेति का अभ्यास रोजाना करना चाहिए। यह नासिका छिद्रों का खुला रखने के लिए सरल उपाय है और इससे बहुत अधिक लाभ होता है।
स्वामी रामदेव कहते हैं हफ्ते में एक या दो बार कुंजल-क्रिया करने से लाभ होता है। इससे भोजन की नली, आमाशय और वायु प्रणाली का शोधन हो जाता है और जमा हुआ बलगम तथा पित्त बाहर आ जाता है।
श्वास-प्रश्वास संस्थान को स्वस्थ व निरोग रखने के लिए लम्बे गहरे श्वास लेने-छोड़ने की आदत डालें। इसके लिए सुबह खुले स्थान में जाकर अभ्यास करें। पार्क में हल्की दौड़ लगाएं ताकि जल्दी-जल्दी नाक के रास्ते श्वास आये जाये।
प्राणायाम का अभ्यास नियमित रूप से करें- कपालभाति प्राणायाम श्वास-प्रश्वास संस्थान को स्वस्थ रखने के लिए अवश्य ही करें। पद्मासन या सुखासन में बैठकर श्वास को बाहर फेंके और श्वास लेने की कोशिश करें। अपने आप ही जो श्वास आये, उसे आने दें।
आप अपना पूरा ध्यान श्वास को बाहर फेंकने पर ही रखें और झटका पेट से लगना चाहिए तथा पेट अंदर की ओर पिचकना चाहिए। इसे 25-50 बार करें। एक मिनट में 120 बार तक इसका अभ्यास बढ़ाया जा सकता है।
श्वास-प्रश्वास संस्थान को निरोग रखने के लिए दोनों नासिकाओं से पूरा श्वास भरें और उसे अंदर रोक लें. कुंभक करें। अपनी शक्ति के अनुसार ही श्वास को रोके और प्रतिदिन श्वास रोकने का अभ्यास बढ़ाते जायें। फिर धीरे-धीरे अधिक समय लगाकर पूरा श्वास बाहर निकालें। श्वास रोकने से ऑक्सीजन फेफड़ों के छिद्रों तक जायेगी तथा रक्त को शुद्ध करेगी।
जहाँ ताजी और खुली हवा आने की व्यवस्था हो ऐसे स्थान पर सोने की व्यवस्था करें। मुंह ढक कर न सोयें और सोते समय श्वास नासिका से ही चलना चाहिए।
नजला या जुकाम के कारण नाक प्रायः बंद रहता हो तो दिन में एक या दो बार नाक से भाप लें।
नजला-जुकाम पुराना है और बिगड़ा हुआ है तो लय बद्ध तरीके से पूरी शक्ति से श्वास को अंदर लें और पूरी शक्ति से श्वास को बाहर निकालें। ऐसा पहले धीरे-धीरे, फिर जल्दी-जल्दी करें लेकिन ध्यान रखें लय टूटे नहीं। इससे श्वास-प्रश्वास संस्थान का स्वास्थ्य बढ़ता है।
इन सब के साथ ही प्रतिदिन या एक दिन छोड़कर थोड़ा घी या सरसों का तेल गर्म करके रूई से या ड्रापर से दोनों नासिका में डालकर श्वास से अंदर खींच लें, जिससे गले तक श्वास नली तर हो जाए।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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