Published By:धर्म पुराण डेस्क

धनाधीश कुबेर…

महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवाने भरद्वाजजी की कन्या इलविला का पाणिग्रहण किया। उसी से कुबेरजी की उत्पत्ति हुई।

भगवान् ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। ये तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल हुए। कैलास के समीप इनकी अलकापुरी है।

श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेरजी अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजते हैं। इनके पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रद्वारा नारदजी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं। इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं।

प्राचीन ग्रीक भी प्लूटो नाम से धनाधीश को मानते थे। पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेरजी हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भूगर्भस्थित निधि प्राप्त होती है। निधि-विद्या में निधि सजीव मानी गयी है, जो स्वतः स्थानान्तरित होती है। 

पुण्यात्मा योग्य शासक के समय में मणि-रत्नादि स्वतः प्रकट होते हैं। आज तो अधिकांश मणि, रत्न लुप्त हो गये। कोई स्वतः प्रकाश रत्न विश्व में नहीं, आज का मानव उनको उपभोग्य जो मानता है। यज्ञ दान के अवशेष का उपभोग हो, यह वृत्ति लुप्त हो गयी। 

कुबेरजी मनुष्य के अधिकार के अनुरूप कोष का प्रादुर्भाव या तिरोभाव कर देते हैं। भगवान् शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है। प्रत्येक यज्ञान्त में इन वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है।




 

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