हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व है। यह दिन मुख्य रूप से सप्तर्षियों को समर्पित है। इस दिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत में ब्राह्मणों को दान देने का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि अगर जीवन में जाने-अनजाने कोई गलती हो गई हो तो ऋषि पंचमी का व्रत करने से उससे छुटकारा मिल जाता है।
ऋषि पंचमी हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाई जाती है। आमतौर पर ऋषि पंचमी हरतालिका तीज के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाई जाती है। इस साल ऋषि पंचमी 19 और 20 सितंबर को मनाई जाएगी। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों व्रत करने से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। आइए जानते हैं क्या है ऋषि पंचमी व्रत की विधि।
ऋषि पंचमी का महत्व
यह व्रत महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मासिक धर्म के दौरान रसोई में काम करने या खाना पकाने से मासिक धर्म संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में ऋषि पंचमी का व्रत करने से इस दोष से छुटकारा मिल सकता है।
मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से छुटकारा मिल जाता है और सप्तर्षियों का आशीर्वाद मिलता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। यदि गंगा में स्नान करना संभव न हो तो आप घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
ऋषि पंचमी पूजा का शुभ समय
पंचमी तिथि 19 सितंबर, मंगलवार को दोपहर 01:43 बजे शुरू होगी। इसका समापन 20 सितंबर को दोपहर 02:16 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार ऋषि पंचमी का व्रत 20 सितंबर को रखा जाएगा और व्रत पूजा का समय सुबह 11.19 बजे से 01.45 बजे तक रहेगा।
जानें कैसे करें व्रत (ऋषि पंचमी पूजा विधि)
ऋषि पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद घर और मंदिर को अच्छी तरह साफ करें। इसके बाद धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत आदि पूजा सामग्री एकत्र करें और चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। चौकी पर सप्तऋषि का चित्र लगाएं।
आप चाहें तो अपने गुरु की फोटो भी लगा सकते हैं। अब उन्हें फल, फूल और नैवेद्य आदि अर्पित करें और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगे। इसके बाद आरती करें और सभी को प्रसाद बांटे। इस दिन बड़ों का आशीर्वाद भी लेना चाहिए।
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